Desh Prem par nibandh likhiye 5000 words
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माँ हमें जन्म देती है और धरती माँ की गोद में पल कर हम बड़े होते हैं। जिस देश में हमने जन्म लिया, वह हमारी मातृभूमि हमें प्राणों से भी अधिक प्रिय है। उस पर हमारा सब कुछ न्योछावर है, क्योंकि उसने हमें अन्न जल दिया, आश्रय दिया, हमारा पोषण किया।
हर प्राणी अपनी जन्मभूमि से जुड़ा होता है। वह उससे अलग अपने अस्तिव को पूर्ण नहीं मानता। मनुष्य कहीं भी चला जाये, विदेशों में उसे कितनी ही सुख मिले, वह वापस अपने देश आना चाहता है। वह अपना देश, अपनी जन्मभूमि कभी नहीं भूलता। मनुष्य की तरह ही पशु पक्षी भी अपनी जन्मभूमि के स्नेह बंधन एवं आकर्षण में बंधे होते हैं। पक्षी या पशु सारा दिन दाना पानी की खोज में यहाँ वहाँ घूमते जरूर हैं, पर रात को पक्षी अपने घोंसलों और पशु अपने खूँटें पर पहुँच जाते हैं।
देश प्रेम की यह भावना इंसान के हदय को देशभक्ति से ओत प्रोत रखती है और समय आने पर वह अपना सब कुछ देश के लिए न्योछावर करने को तत्पर रहता है।
Answer:
“देश प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है, अलम असीम त्याग से विलखित.
आत्मा के विकास से जिसमें, मानवता होती है विकसित.”
प्रस्तावना
मनुष्य जिस देश अथवा समाज में पैदा होता है उसकी उन्नति में सहयोग देना उसका प्रथम कर्तव्य है, अन्यथा उसका जन्म लेना व्यर्थ है. देश प्रेम की भावना ही मनुष्य को बलिदान और त्याग की प्रेरणा देती है. मनुष्य जिस भूमि पर जन्म लेता है, जिसका अन्न खाकर, जल पीकर अपना विकास करता है उसके प्रति प्रेम की भावना का उसके जीवन में सर्वोच्च स्थान होता है इसी भावना से ओतप्रोत होकर कहा गया है-
“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”
अर्थात जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है.
देश प्रेम की स्वाभाविकता
देश प्रेम की भावना मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है. अपनी जन्मभूमि के लिए प्रत्येक मनुष्य के ह्रदय में मोह तथा लगाव अवश्य होता है. अपनी जन्मभूमि के लिए मनुष्य ही नहीं पशु पक्षियों में भी प्रेम होता है. वे भी उसके लिए मर मिटने की भावना रखते हैं-
आग लगी इस वृक्ष में जलते इसके पात,
तुम क्यों जलते पक्षियों, जब पंख तुम्हारे पास.
फल खाए इस वृक्ष के बीट लथेडें पात,
यही हमारा धर्म हैं जले इसी के साथ
देश प्रेम की भावना प्रत्येक युग में सर्वत्र विद्यमान रहती हैं. मनुष्य जहां रहता है वहां अनेक कठिनाइयों के बाद भी उस स्थान के प्रति उसका लगाव बना रहता है. देश प्रेम के सक्षम कोई सुविधा-असुविधा नहीं रहती है. विश्व के अनेक ऐसे प्रदेश एवं राष्ट्र है जहां जीवन अत्यंत कठिन है किंतु फिर भी वहां के निवासियों ने स्वयं को उन परिस्थितियों के अनुरूप बना लिया और सदैव उसी देश के निवासी बन कर रहे. मनुष्य पशु आदि जीवधारियों की तो बात ही क्या, फूल पौधों में भी अपने देश के लिए मिटने की चाह होती है. पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प की अभिलाषा का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है-
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक.
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पर जावें वीर अनेक.
अपने देश अथवा अपनी जन्मभूमि के प्रति प्रेम होना मनुष्य की एक स्वाभाविक भावना है
देश प्रेम का महत्व