Hindi, asked by anjumanmass, 3 months ago

Desh Prem par nibandh likhiye 5000 words​

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Answered by mahek77777
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माँ हमें जन्म देती है और धरती माँ की गोद में पल कर हम बड़े होते हैं। जिस देश में हमने जन्म लिया, वह हमारी मातृभूमि हमें प्राणों से भी अधिक प्रिय है। उस पर हमारा सब कुछ न्योछावर है, क्योंकि उसने हमें अन्न जल दिया, आश्रय दिया, हमारा पोषण किया।

हर प्राणी अपनी जन्मभूमि से जुड़ा होता है। वह उससे अलग अपने अस्तिव को पूर्ण नहीं मानता। मनुष्य कहीं भी चला जाये, विदेशों में उसे कितनी ही सुख मिले, वह वापस अपने देश आना चाहता है। वह अपना देश, अपनी जन्मभूमि कभी नहीं भूलता। मनुष्य की तरह ही पशु पक्षी भी अपनी जन्मभूमि के स्नेह बंधन एवं आकर्षण में बंधे होते हैं। पक्षी या पशु सारा दिन दाना पानी की खोज में यहाँ वहाँ घूमते जरूर हैं, पर रात को पक्षी अपने घोंसलों और पशु अपने खूँटें पर पहुँच जाते हैं।

देश प्रेम की यह भावना इंसान के हदय को देशभक्ति से ओत प्रोत रखती है और समय आने पर वह अपना सब कुछ देश के लिए न्योछावर करने को तत्पर रहता है।

Answered by maheshatrijjr
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Answer:

“देश प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है, अलम असीम त्याग से विलखित.

आत्मा के विकास से जिसमें, मानवता होती है विकसित.”

प्रस्तावना

मनुष्य जिस देश अथवा समाज में पैदा होता है उसकी उन्नति में सहयोग देना उसका प्रथम कर्तव्य है, अन्यथा उसका जन्म लेना व्यर्थ है. देश प्रेम की भावना ही मनुष्य को बलिदान और त्याग की प्रेरणा देती है. मनुष्य जिस भूमि पर जन्म लेता है, जिसका अन्न खाकर, जल पीकर अपना विकास करता है उसके प्रति प्रेम की भावना का उसके जीवन में सर्वोच्च स्थान होता है इसी भावना से ओतप्रोत होकर कहा गया है-

“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”

अर्थात जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है.

देश प्रेम की स्वाभाविकता

देश प्रेम की भावना मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है. अपनी जन्मभूमि के लिए प्रत्येक मनुष्य के ह्रदय में मोह तथा लगाव अवश्य होता है. अपनी जन्मभूमि के लिए मनुष्य ही नहीं पशु पक्षियों में भी प्रेम होता है. वे भी उसके लिए मर मिटने की भावना रखते हैं-

आग लगी इस वृक्ष में जलते इसके पात,

तुम क्यों जलते पक्षियों, जब पंख तुम्हारे पास.

फल खाए इस वृक्ष के बीट लथेडें पात,

यही हमारा धर्म हैं जले इसी के साथ

देश प्रेम की भावना प्रत्येक युग में सर्वत्र विद्यमान रहती हैं. मनुष्य जहां रहता है वहां अनेक कठिनाइयों के बाद भी उस स्थान के प्रति उसका लगाव बना रहता है. देश प्रेम के सक्षम कोई सुविधा-असुविधा नहीं रहती है. विश्व के अनेक ऐसे प्रदेश एवं राष्ट्र है जहां जीवन अत्यंत कठिन है किंतु फिर भी वहां के निवासियों ने स्वयं को उन परिस्थितियों के अनुरूप बना लिया और सदैव उसी देश के निवासी बन कर रहे. मनुष्य पशु आदि जीवधारियों की तो बात ही क्या, फूल पौधों में भी अपने देश के लिए मिटने की चाह होती है. पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प की अभिलाषा का अत्यंत सुंदर वर्णन किया है-

मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक.

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पर जावें वीर अनेक.

अपने देश अथवा अपनी जन्मभूमि के प्रति प्रेम होना मनुष्य की एक स्वाभाविक भावना है

देश प्रेम का महत्व

देशप्रेम विश्व के सभी आकर्षणों से बढ़कर है. यह एक ऐसा पवित्र तथा सात्विक भाव है जो मनुष्य को लगातार त्याग की प्रेरणा देता है. देश प्रेम का संबंध मनुष्य की आत्मा से है. मानव की हार्दिक इच्छा रहती है कि उसका जन्म जिस भूमि पर हुआ है वहीं पर मृत्यु का वर्णन करें. विदेशों में रहते हुए भी व्यक्ति अंत समय में अपनी मातृभूमि के दर्शन करना चाहता है. राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है-

पा कर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा.

तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा.

तेरी ही यह देह, तुझी से बनी हुई है.

बस तेरे ही सुरस-सार से सनी हुई है.

फिर अन्त समय तू ही इसे अचल देख अपनायेगी.

हे मातृभूमि! यह अन्त में तुझमें ही मिल जायेगी.

देश प्रेम की भावना मनुष्य की उच्चतम भावना है. देश प्रेम के सामने व्यक्तिगत लाभ का कोई महत्व नहीं है. जिस मनुष्य के मन में देश के प्रति अपार प्रेम और लगाव नहीं है, उस मानव के अंदर को कठोर पाषाण खंड कहना ही उपयुक्त होगा. इसलिए राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त के अनुसार-

जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं.

वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं.

जो मानव अपने देश के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर देता है तो वह अमर हो जाता है, किंतु जो देश प्रेम तथा मातृभूमि के महत्व को नहीं समझता, वह तो जीवित रहते हुए भी मृतक जैसा है.देश प्रेम के विविध क्षेत्र तथा देश सेवा

देश प्रेम की भावना को व्यक्त करने वाले विभिन्न क्षेत्र हैं. हम तन-मन-धन से देश के विकास में सहयोग दे सकते है. हमारे जिस कार्य से देश की प्रगति हो वही कार्य देशप्रेम की सीमा में आ जाता है. देश की वास्तविक उन्नति के लिए हमें सब प्रकार से देश की सेवा करनी चाहिए. देश सेवा के विभिन्न क्षेत्र हो सकते हैं-

राजनीति द्वारा

भारत प्रजातंत्रात्मक देश है जिसमें वास्तविक शक्ति जनता के हाथ में रहती है. अपने मताधिकार का उचित प्रयोग करके, जनप्रतिनिधि के रूप में सत्य, निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करके और देश को जाति, संप्रदाय तथा प्रांतीयता की राजनीति से मुक्त करके, हम उसके विकास में सहयोग दे सकते हैं.

समाज सेवा द्वारा

समाज में फैली हुई कुरीतियों को दूर करके भी हमें अपने देश को सुधारना चाहिए. अशिक्षा, मद्यपान, बाल विवाह, छुआछूत, व्यभिचार आदि अनेक बुराइयों को दूर करके हम अपने देश की अमूल्य सेवा कर सकते हैं और अपनी मातृभूमि के प्रति देश प्रेम की भावना का परिचय दे सकते हैं.

धन द्वारा

जो नागरिक आर्थिक दृष्टि से अधिक संपन्न है उन्हें देश की विकास परियोजनाओं में सहयोग देना चाहिए, उन्हें देश के रक्षा कोष में उदारतापूर्वक अधिक से अधिक दान देना चाहिए जिससे देश की विभिन्न विकास योजना सुचारू रूप से चल सके.

कला द्वारा

कलाकार से कई रूप से देश की सेवा कर सकता है. उसकी कृतियों में अद्भुत शक्ति होती है. कवि तथा लेखक अपनी रचनाओं द्वारा मनुष्य में उच्च विचारों तथा देश के लिए त्याग की भावना पैदा कर सकते हैं. कलाकारों की सुन्दर कृतियों को विदेशियों द्वारा खरीदने पर विदेशी मुद्रा का लाभ होता है यह भी एक प्रकार की देश सेवा ही है.

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