Desh prem per sanskrit me kavita
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ॐ भद्रमिच्छंत ऋषयः स्वर्विदस्त्पो दीक्षामुपनिषेदुराग्रे ।
ॐ भद्रमिच्छंत ऋषयः स्वर्विदस्त्पो दीक्षामुपनिषेदुराग्रे ।ततो राष्ट्रं बलमोजश्च जातं तदस्मै देवा उपसन्नमंतु ॥
- प्रकाशमय ज्ञान वाले ऋषियों ने सृष्टी के आरम्भ में लोक कल्याण की इच्छा करते हुए दीक्षापूर्वक तप किया उससे राष्ट्र, बल और ओज की उत्पत्ति हुई इस (राष्ट्र) के लिए देवगण उस (तप और दीक्षा) को अवतीर्ण कर (राष्ट्रिकों अर्थात देशवाशियों में) संस्थित अथवा, समस्त प्रबुद्ध जन इस राष्ट्रदेवता की उपासना करें ।
हिमालयं समारभ्य यावत् इंदु सरेावरम् ।
हिमालयं समारभ्य यावत् इंदु सरेावरम् ।तं देवनिर्मितं देशं हिंदुस्थानं प्रचक्षते ॥
- हिमालय पर्वत से शुरू होकर हिन्द महासागर तक फैला हुआ यह ईश्वर निर्मित देश है जिसे “हिंदुस्थान” कहते हैं ।
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