desh prem vishay pr 100-150 sabdo ka niband likhe
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प्रेम एक मानवीय गुण है जो जीवन को सार्थकता देता है, बगैर प्रेम के कटु जीवन विष की तरह बन जाता हैं, मानव का यह प्रेम विविध रूप में छलकता है यथा परिवार प्रेम, जातीय प्रेम, दोस्तों से प्रेम इन सबसे बढ़कर प्रेम का जो स्वरूप हैं वह है देश प्रेम अथवा स्वदेश प्रेम. मानव ही नहीं पशु और पक्षी अपनी जननी जन्मभूमि से अगाध प्रेम करते हैं. फिर भला मानव इससे अछूता कैसे रह सकता हैं.
प्रत्येक भारतीय अपनी जन्मभूमि को माँ कहकर सम्बोधित करता हैं, उसके मन के ये भाव देशप्रेम की तीव्र अभिव्यंजना करते हैं. यह प्रेम स्वाभाविक है क्योंकि हम जिस मिट्टी में पले बढ़े हमने अपने विकास किया तथा जीवन की आवश्यक सुविधाओं को इसने प्रदान किया, अतः हमारा दिल स्वतः ही इस भूमि से प्रेम करने लगता हैं. प्रत्येक नागरिक का यह प्रथम कर्तव्य है कि वे अपने देश के प्रति उनके प्रतीक चिन्हों, संकेतों एवं अन्य लोगों से प्रेम करे तथा घुलमिलकर रहे.
देशभक्ति का अर्थ हैं अपने देश के विकास, उसकी गरिमा को बढ़ाने में सकारात्मक भूमिका निभाना एवं आवश्यकता पड़े तो अपने देश के लिए मर मिटने के लिए तैयार रहना ही देश प्रेम हैं. बहुत से लोग मानते है कि अपने वतन की रक्षा की खातिर मर मिटने वाला ही देश प्रेमी होता हैं, जबकि ऐसा नहीं है. निसंदेह देश की सीमाओं की रखवाली करने वाले हमारे सैनिक देश प्रेम से लबरेज होते ही हैं, मगर देश में बसने वाला आम नागरिक, शिक्षक, छात्र, व्यापारी, राजनेता, अभिनेता भी देश प्रेमी होते है जो अपने देश के विकास एवं सुधार में अपना अधिकतम योगदान देने का प्रयत्न करते हैं.
संसार में यदि कही देश प्रेम की अनूठी मिसाल देखने को मिलती हैं तो वह भारत देश एवं यहाँ के लोगों में ही हैं. जिन्होंने इतिहास की हर सदी में अपने वतन की रक्षा की खातिर जान तक कुर्बान कर देने के उदाहरण प्रस्तुत किये हैं. स्वतंत्रता संग्राम को ही ले लीजिए. न जाने कितने अनाम यौद्धाओं, क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकुमत को उखाड़ने के लिए अपना घर, परिवार और अंत में अपने जीवन का त्याग कर दिया था. देश के प्रति इसी समपर्ण के भाव को देश प्रेम की उपमा दी जाती है जिसे हमारे साहित्य में भी महत्वपूर्ण स्थान दिया हैं. कवि गुप्त लिखते है कि वह दिल नहीं पत्थर है जिसमें स्वदेश के प्रति प्रेम का भाव नहीं हैं.
यदि हम आधुनिक पीढ़ी में देश प्रेम की बात करे तो अफ़सोस की बात हैं अपनी फलीफुली राष्ट्र भक्ति की विरासत लिए हमारी पीढ़ी राष्ट्र के नाम पर उदासीन प्रतीत होती हैं. मात्र कुछ दिनों पन्द्रह अगस्त या छब्बीस जनवरी को ही उनका देश प्रेम जगता है कुछ कार्यक्रमों की आहुति के बाद वह अगले सीजन तक के लिए सुप्त हो जाता है. धीरे धीरे खत्म होती जा रही देश प्रेम की यह भावना राष्ट्र के स्वर्णिम भविष्य की अच्छी निशानी नहीं हैं. हमारे युवकों छात्र छात्राओं में वतन पर मर मिटने का जज्बा हमें उत्पन्न करना होगा, तथा इस कार्य में शिक्षण संस्थान एवं हमारे गुरुजन अहम भूमिका निभा सकते हैं.
सरल शब्दों में देश प्रेम अपने राष्ट्र, वतन के प्रति सम्मान, सर्वोच्च इज्जत की भावना का होना हैं. आप भी दिल में अपने भारत के प्रति अगाध श्रद्धा व प्रेम रखते है तो आप देशभक्त हैं. किसी भी सम्प्रभु राष्ट्र में देशभक्तों का बड़ा समूह होता है जो स्व से अधिक अपने वतन को तरजीह देते हैं. अपने स्तर पर वे सब कुछ करने के लिए तत्पर रहते है जिसमें देश का भला निहित हो, आज की आधुनिक जीवन शैली एवं दोहरी नागरिकता ने व्यक्ति में देश प्रेम के भाव को न केवल कम किया बल्कि इन्हें रूढ़ि वादी सोच तक करार दिया हैं.
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