Dev seena ka geet me kon sa ras pradhan hai?
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hhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh pta ni
देवसेना इस गीत में कह रही है कि आज मैं वेदना से भरे इस हृदय से सुखद जीवन की कल्पनाओं से विदाई ले रही हूँ। स्कन्दगुप्त के प्रेम में मेरी अभिलाषा रूपी प्राप्त भिक्षा को वापस भिक्षा के रूप में ही लौटा रही हूँ। जीवन के अंतिम पङाव पर पहुँचते-पहुँचते देवसेना थक चुकी है। थकान में पसीने की बूँदों के साथ ही निराश जीवन गाथा के कारण आँखों से आँसू भी गिर रहे हैं। देवसेना कहती है कि मेरे इस जीवन रूपी यात्रा में सदैव नीरवता ही रही, जीवन में हमेशा तनहाइयाँ आलस करती रहती थी।
जिस प्रकार कोई यात्री दिनभर की यात्रा से थक कर साँझ को जंगल के किसी पेङ तले सुखद सपनों को देखता हुआ विश्राम करता है उसी प्रकार मेरे जीवन रूपी यात्रा का अंतिम पङाव घटित हो रहा था, ऐसे समय में अर्द्धरात्रि को गाया जाने वाला विहाग राग गाने लगे तो यात्री को अच्छा नहीं लगेगा, देवसेना को भी इस समय स्कन्दगुप्त का प्रणय निवेदन अच्छा नहीं लगा। देवसेना कहती हैं मेरी यौवनावस्था में सभी लोगों की प्यासी नजर मेरे तन को पाने मुझ पर गङी रहती थी और मैं हमेशा स्वयं को बचाए रखती थी क्योंकि आशा अमर धन होती है और स्कन्दगुप्त की आशा लगाए पूरी जिंदगी बीत गई वह यौवन रूपी कमाई अब मैं खो चुकी हूँ।
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