Devsena Ka git Parth me kis rash Ka pryog h
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देवसेना का गीत’ प्रसाद कृत स्कंदगुप्त नाटक से उद्धृत है। हूणों के आक्रमण से आर्यावर्त संकट में है। मालव नरेश बंधुवर्मा सहित परिवार के सभी लोग राष्ट्र रक्षार्थ वीरगति पा चुके है। बंधुवर्मा की बहन देवसेना स्कन्दगुप्त से प्रेम करती थी लेकिन स्कन्दगुप्त का रूझान विजया के प्रति था। नाटक में कथानक मोङ पर स्कन्दगुप्त स्वयं देवसेना से प्रणय निवेदन करता है किंतु तब देवसेना कहती है- इस जन्म के देवता और उस जन्म के प्राप्य क्षमा! और वह वृद्ध पर्णदत्त के साथ आश्रम में गाना गाकर भिक्षावृत्ति से जीवन-निर्वाह करती है। उधर स्कन्दगुप्त आजीवन ब्रह्मचर्य व्रतधारण कर लेता है।
आह! वेदना मिली विदाई!
मैंने भ्रम-वश जीवन संचित,..... :)...✌️✌️✌️✌️
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