ढाल के प्रकार को चित्र द्वारा समझाइए
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जब कभी किसी सड़क में मोड़ आता है तो उस मोड़पर सड़क के फर्श को मोड़ के बाहरी ओर ऊँचा उठाकर सड़क को ढालू बनाया है। इसी प्रकार रेल के मार्ग में भी मोड़ बाहरी पटरी भीतरी से थोड़ी उँची रखी जाती है। सड़क की सतह का, या रेल के मार्ग का, मोड़ पर इस प्रकार ढालू बनाया जाना ढाल या आनति (कैन्ट या सुपर-ऐलिवेशन) कहलाता है।
ढाल
मोड़ पर चलती हुई गाड़ी पर जो बल काम करते हैं वे
(१) अपकेंद्र बल (सेंट्रिफ़ुगल फ़ोर्स) जिसका बाहर की ओर क्षैतिज तथा त्रैज्य प्रभाव पड़ता है,
(२) गाड़ी का भार, जो ऊर्ध्वाधर नीचे की ओर कार्य करता है और
(३) सड़क के फर्श की प्रतिक्रिया जो ऊपर की ओर काम करती है।
अपकेंद्र बल का संतुलन सड़क की सतह का घर्षण करता है और यदि इस घर्षण का बल यथेष्ट न हो तो गाड़ी बाहर की ओर फिसल जाएगी। उठान इस फिसलने की प्रवृत्ति को रोकने में सहायता करती है।
उठान का प्रयोग रेल के मार्गों पर दीर्घकाल से किया जा रहा है, किंतु जहाँ तक सड़कों का प्रश्न है, पहले गाड़ियों की मंद गति के कारण इसकी आवश्यकता नहीं पड़ती थी। आजकल मोटर गाड़ियों की तीव्र गति के कारण सड़क की उठान एक आधुनिक विकास है।
आवश्यक ढाल उस महत्तम गति पर निर्भर रहती है जिसपर गाड़ियों के चलने की आशा की जाती है, अर्थात् उनके कल्पित वेग पर। ढाल निम्नलिखित सूत्र के अनुसार निश्चित की जाती है