Dhanraj Pillay Ne zameen se uth kar Aasman ka Sitara banne tak ki yatra Ki Hai lagbhag 100 shabdon Mein is Safar ka varnan kijiye
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धनराज पिल्लै ने ज़मीन से उठकर आसमान का सितारा बनने तक की यात्रा तय की है। लगभग सौ शब्दों में इस सफ़र का वर्णन कीजिए।
यह प्रश्न संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिज़ाज हो गया: धनराज पाठ से लिया गया है| धनराज पिल्लै ने ज़मीन से उठकर आसमान का सितारा बनने तक की यात्रा में उन्होंने बहुत मेहनत कि है| सितारा बनने के लिए उनके रास्ते में बहुत कठिनाइयों और संघर्षों का सामना करना पड़ा| धनराज पिल्लै ने कभी भी हार नहीं मानी| बचपन से गरीब होने के कारण भी वह मेहनत करते रहे|
धनराज पिल्लै का परिवार बहुत गरीब था| उनके पास अपने लिए एक हॉकी स्टिक तक खरीदने के पैसे नहीं होते थे। वह अपने मित्रों से उधार लेकर और बाद में अपने बड़े भाई की पुरानी स्टिक से हॉकी खेलते थे| उन्होंने पुरानी स्टिक से बहुत अभ्यास किया|
अंत में उनकी मेहनत रंग लाई| 16 साल की उम्र में उन्हें मणिपुर में 1985 में जूनियर राष्ट्रीय हॉकी खेलने का मौका मिला। 1986 में सीनियर टीम में खेले| 1989 में उन्हें ऑलविन एशिया कप कैंप के लिए चुना गया। उन्हें एक के बाद एक सफलता मिलती गई| इनकी सफलता में सबसे बड़ा हाथ इनकी माँ का भी था| इनकी माँ ने इनका साथ हमेशा दिया| एक दिन धनराज पिल्लै एक सफल व्यक्ति बने| जीवन में मेहनत और आत्म विश्वास के साथ सफलता जरुर मिलती है|
Answer:
उत्तर:- धनराज पिल्लै की ज़मीन से उठकर आसमान का सितारा बनने तक की यात्रा कठिनाइयों और संघर्षों से भरी थीं। धनराज पिल्लै एक साधारण परिवार के होने के कारण उनके लिए हॉकी में आना इतना आसान न था। उनके पास हॉकी खरीदने तक के पैसे नहीं थे। उन्हें हॉकी खेलने के लिए अपने मित्रों से हॉकी स्टिक उधार माँगनी पड़ती थी। लेकिन कहते हैं ना जहाँ चाह वहाँ राह धनराज पिल्लै ने हार न मानते पुरानी स्टिक से ही निष्ठा और लगन से अभ्यास करते रहे और विश्व स्तरीय खिलाड़ी बनकर दिखाया। ऑलविन एशिया कैंप में चुने जाने के बाद धनराज पिल्लै ने मुड़कर कभी पीछे नहीं देखा अर्थात् उसके बाद वे लगातार सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते गए।