Dhar kavita ka aashay aapne shbdo me likhiye
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अरुण कमल के पहले संग्रह "अपनी केवल धार" की अत्यधिक चर्चित और प्रशंसित रचनाओं में से एक इस कविता के बारे में आमतौर पर यह कॉमनसेंस बना है कि कवि ने इसमें आम जन के प्रति विनम्रता और कृतज्ञता का समुचित ज्ञापन किया है। उसकी रचना और विचार का निर्माण जिन धातु-तत्वों से हुआ है उनका श्रेय वह जनसमुदाय को देता है। यानी यह कविता एक मध्यवर्गीय बौद्धिक रचनाकार की निम्नवर्गीय श्रमिकजन के प्रति कृतज्ञता के उदाहरण के रूप में भी देखी गयी है। निम्नवर्ग के प्रति मध्यवर्ग के रवैये का प्रश्न मुक्तिबोध के समय से ही कविता का केंद्रीय प्रश्न है और अगर किसी रचना में निम्नवर्ग की भूमिका का समुचित स्वीकार दिखता है तो यह निश्चय ही प्रशंसनीय है। लेकिन यहाँ प्रश्न यह है कि इस छोटी-सी कविता में एक निहायत हलके संकेत के सहारे जो कुछ कहा गया है क्या वह निम्नवर्ग की भूमिका के प्रति किसी वास्तविक सरोकार या उसकी स्वीकृति से पैदा हुआ है या फिर, बस ऐसा मान लिया गया है।
कविता की शुरुआत से ही विनम्रता, दीनता के आवरण में प्रस्तुत होती है। ज़ाहिर है कि यह किसी याचक या भिक्षुक की संवेदना का काव्यान्तरण नहीं है, क्योंकि ऐसी स्थिति में लोहे और धार का रूपक क़तई अप्रासंगिक होता। यह ज़मीन से जुड़े, खेती पर निर्भर लेकिन ख़ुद शारीरिक श्रम न करके दूसरों के श्रम से उपजे अन्न-जल का उपयोग करने वाले समृद्ध किसान और पढ़े-लिखे बौद्धिक वर्ग की मिलीजुली भूमि से लिखी गई कविता है। अब सवाल उठता है कि इसमें व्यक्त दीनता का मनो-सामाजिक आधार क्या है।