Hindi, asked by harsh2964, 11 months ago

dharam ekta ka Madhyam his vishya par nibandh 500 words maimlikhe​


jatinsaini1140: hindi m
harsh2964: pledge send end tome
harsh2964: Please
jatinsaini1140: mark my answer brainlist and like or vote me

Answers

Answered by jatinsaini1140
4

एक तरह की सोच, एक तरह की जीवन पद्धति एवं एक ही तरह के जीवन मूल्यों के विस्तार का एक सशक्त माध्यम धर्म है। धर्म के अविर्भाव का मूल उद्देश्य ही लोगों के बीच एकता को बढ़ाना है। विश्व में धर्म की उत्पत्ति से पहले लोग कबीलाई संस्कृति में रहते थे, हालांकि कबीलाई संस्कृति में भी एक साझा जीवन पद्धति को अपनाने की प्रक्रिया पर बल दिया जाता था और हर कबीले में कुछ-ना-कुछ नियमों की सारणी होती थी। धीरे-धीरे इन कबीलों का आकार बड़ा होने लगा और लोगों के वैचारिक विकास के साथ ही समाज का निर्माण हुआ और समाज को संतुलित रखने के लिए व्यापक स्तर पर नियम बनाए जाने लगे।

इन नियमों के साथ ही लोगों के रहन-सहन एवं जीवन जीने के तरीके, आहार-विहार, आपस में एक-दूसरे के साथ के रिश्ते, ईश्वर में विश्वास, पूजा या इबादत की पद्धति आदि का विकास हुआ जिन्हें व्यापक स्तर पर धर्म की संज्ञा दी जाने लगी। इस प्रकार विश्व में अलग-अलग क्षेत्रों में कई धर्म स्थापित हो गए, हालांकि विश्व के सभी धर्मों के मूल में एकता की ही भावना है। अर्थात् लोगों को एक सूत्र में बांधे रहना जिससे एक समाज का निर्माण हो सके और लोगों के बीच पनपने वाले विभिन्न मत-मतांतरों के विभेद को कम से कमतर किया जा सके। इस प्रकार समाज में धर्म की उत्पत्ति का आधार ही एकता है जिसके द्वारा लोग संगठित होकर अपने समाज के हितों के प्रति सोचते हुए अपने समूह की बेहतरी की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।

धर्म आपसी सद्भाव एवं एकता का प्रतीक है क्योंकि किसी धर्म विशेष को मानने वाले लोग एक ही प्रकार की जीवन पद्धति का पालन करते हैं। धर्म या मजहब अपने अनुयायिओं को एकता के सूत्र में पिरोकर रखने का कार्य भी करता है। अनेकता में एकता का सर्वोत्तम उदाहरण पेश करते हुए भारत के प्रसिद्ध कवी महम्मद इकबाल की १९०४ में लिखी गई पंक्तियां “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” अर्थात् दुनिया का हर धर्म आपस में एकता का पाठ पढ़ाते हैं, आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। जब-जब किसी भी विदेशी आक्रांता ने भारत पर आक्रमण किया है उसने धर्म के बजाए समाज मे साम्प्रदायिक की भावनाओं को पनपाकर राष्ट्रीय एकता को खंडित करने का प्रयास किया है। धार्मिक एकता को विखंडित करने के बाद ही वे भारत पर कब्जा करने में कामयाब हो पाए। अंग्रेजों ने भी यही किया और 200 वर्षों तक भारत पर शासन किया। हम निश्चित रूप से इतने वर्षों की गुलामी से बच जाते अगर हमने साम्प्रदायिकता की भावनाओं पर अंकुश लगाते हुए, सर्वधर्म समभाव एवं धर्म की मूल भावना को सही अर्थों में समझा और अपनाया होता।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार धर्म लोगों को संगठित करने का कार्य करता है और भाईचारे की भावना के साथ समाज को समग्र विकास के पथ पर अग्रसर करता है। सामाजिक एकता को बढ़ाना विश्व के सभी धर्मों की स्थापना का मूल उद्देश्य है। महात्मा बुद्ध ने भी धम्मं शरणं गच्छामि, संघम शरणं गच्छामि का संदेश दिया। अर्थात् उन्होंने धर्म के शरण में और इस प्रकार संघ के शरण में अर्थात संगठित होने का आह्वान किया जो कि आपसी एकता एवं भाईचारे का परिचायक है। धर्म का उद्देश्य अपने अनुयायियों को जीवन जीने के लिए जरूरी सभी गुणों से परिपूर्ण करते हुए एक ऐसा आधार प्रदान करना है जिससे वे एकता की भावना से संगठित होकर समाज की भलाई के लिए कार्य कर सकें। इन संदेशों का सार यह है कि हर मजहब या धर्म एकता का ही पाठ पढ़ाते हैं।

 


harsh2964: Thanks
jatinsaini1140: mark my answer brainliest
Similar questions