Social Sciences, asked by sapu8, 1 year ago

dharam or vigyan pr short note

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Answered by yashmoray2
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विज्ञान और धर्म दोनों ही मनुष्य के जीवन को समान रूप से प्रभावित करते हैं । एक और जहाँ विज्ञान तथ्यों व प्रयोगों पर आधारित है वहीं दूसरी और धर्म आस्था और विश्वास पर । दोनों ही मनुष्य की अपोर शक्ति का स्त्रोत हैं ।

विज्ञान जहाँ मनुष्य को समस्त भौतिक सुखों की प्राप्ति करता है, वहीं धर्म से मनुष्य में आध्यात्मिक शक्ति अति है । धर्म के मार्ग पर चलकर वह शांति की प्राप्ति करता है । विज्ञान और धर्म दोनों का स्वरूप अत्यंत विशाल है । प्रश्न यह नहीं है कि दोनों में से श्रेष्ठ कौन है, अपितु यह है कि ये दोनों जीवन-मार्ग हमारे जीवन को किस प्रकार उन्नतिशील एवं शांतिपूर्ण बना सकते हैं ।

विज्ञान का स्वरूप असीमित है । यह प्राय: प्रयोगों व संसार में उपलब्ध विभिन्न तथ्यों पर आधारित है । एक वैज्ञानिक अपने अनुसंधान व प्रयोगों के माध्यम से अनेक सत्यों को एकत्र करके नित नई खोज के लिए प्रयासरत रहता है । उसके मस्तिष्क में उपजी कल्पना इन खोजों, अनुसंधानों व प्रयोगों का आधार होती है ।

इन परिकल्पनाओं को वास्तविक रूप देने हेतु वह उपलब्ध तथ्यों को भली-भाँति जाँचता-परखता है तथा उनमें निहित रहस्यों को खोज निकालता है । इस प्रकार वे रहस्य जो इन खोजों व प्रयोगों के माध्यम से उजागर होते हैं वे सभी विज्ञान की देन कहलाते हैं ।

मनुष्य कभी उड़ते हुए पक्षियों की उड़ान को देखकर परिकल्पना किया करता था कि क्या वह भी इन पक्षियों की भाँति उड़ान भर सकता है । उसकी यह परिकल्पना ही अनेक प्रयोगों का आधार थी । आज अंतरिक्ष की ऊँचाई को नापते हुए वायुयान उन्हीं परिकल्पनाओं का प्रतिफल हैं ।

इस प्रकार विज्ञान स्वयं में अनंत शक्तियों का भंडार है । विज्ञान के अंतर्गत वह अपनी कल्पनाओं को अपने प्रयोगों के माध्यम से साकार रूप देता है । वह प्रकृति में छिपे गूढ़तम रहस्यों को ढूँढ़ निकालता है । एक रहस्य के उजागर होने पर वह दूसरे रहस्य को खोलने व उसे जानने हेतु प्रयत्नशील हो जाता है ।

धर्म भी विज्ञान की ही भाँति अनंत शक्तियों का स्रोत है परंतु धर्म प्रयोगों व तथ्यों पर नहीं अपितु अनुभवों, विश्वासों व आस्थओं पर आधारित है । मनुष्य की धार्मिक आस्था उसे आत्मबल प्रदान करती है । मनुष्य की समस्त धार्मिक मान्यताएँ किसी अज्ञात शक्ति पर केंद्रित रहती हैं । इस शक्ति का आधार मनुष्य की आस्था व विश्वास होता है ।

धर्म मनुष्य के चारित्रिक विकास में सहायक होता है । धर्म के मार्ग पर चलकर वह उन समस्त जीवन मूल्यों को आत्मसात् करता है जो उसके चारित्रिक विकास में सहायक होते हैं । सद्‌गुणों को अपनाना अथवा सन्मार्ग पर चलना ही धर्म है । वे सभी कृत्य जो मानवता के विरुद्‌ध हैं वे अधर्म हैं । हालाँकि कुछ लोग धर्म के नाम पर ही ऐसे कुकृत्यों को करते चले आ रहे हैं और स्वयं को पाक-साफ बता रहे हैं ।

इस प्रकार हम देखते हैं कि अनेक रूपों में विज्ञान धर्म का ही एक रूप है । धर्म और विज्ञान दोनों के परस्पर समान गुणों के कारण ही एक-दूसरे का पूरक माना गया है । विज्ञान और धर्म दोनों ही मनुष्य की असीमित शक्ति का स्रोत हैं । विज्ञान जहाँ मनुष्य को भौतिक गुण प्रदान करता है वहीं धर्म उसे आत्मिक सुख की ओर ले जाता है । दोनों के परस्पर समन्वय से ही मनुष्य पूर्ण सुख की प्राप्ति कर सकता है ।

धर्मरहित विज्ञान मनुष्य को सुख तो प्रदान कर सकता है परंतु यह उसे कभी-कभी विनाश के कगार पर भी ला खड़ा करता है । विज्ञान के वरदान से जहाँ मनुष्य चंद्रमा पर अपनी विजय पताका फहरा चुका है वहीं दूसरी ओर उसने परमाणु बम जैसे हथियार विकसित कर लिए हैं जिसने उसे विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है । धर्म और विज्ञान का समन्वय ही मानवमात्र में संतुलन स्थापित कर सकता है, उसे पतन की ओर जाने से रोक सकता है । यह समन्वय आज की प्रमुख आवश्यकता है ।

धर्म प्राय: मनुष्य की आस्था व विश्वास पर आधारित है परंतु यह भी सत्य है कि कभी-कभी हमारी आस्थाएँ निराधार होती हैं । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लोग चंद्रमा को ईश्वर का रूप मानते थे परंतु विज्ञान ने सिद्‌ध कर दिया है कि यह मिथ्या है । चंद्रमा, पुथ्वी की भांति ही है । यह एक उपग्रह है । इस प्रकार हमारी धार्मिक मान्यताएँ समय-समय पर विज्ञान के द्‌वारा खंडित होती रही हैं ।

विज्ञान के प्रयोगों व नित नए अनुसंधानों ने प्रकृति के अनेक गूढ़ रहस्यों को उजागर किया है परंतु अभी भी ऐसे अनगिनत रहस्य हैं जो विज्ञान की परिधि से बाहर हैं । विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है कि एक ऐसी शक्ति अवश्य है जो समस्त शक्तियों का केंद्र है । अत: जब मनुष्य के लिए सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तब वह उन शक्तियों का स्मरण करता है ।

अत: यह सत्य है कि विज्ञान और धर्म का परस्पर समन्वय ही उसे प्रगति के उत्कर्ष तक ले जा सकता है । जब विज्ञान का सहारा लेकर मनुष्य कुमार्ग पर चल पड़ता है तब धर्म का संबल प्राप्त करना अनिवार्य हो जाता है ।

धर्म इस स्थिति में मनुष्य का तारणहार बन जाता है । दूसरी ओर जब धर्म की छत्रछाया में अधार्मिक व्यक्तियों का समूह आम लोगों को ठगने का प्रयास करते हैं तब विज्ञान का आलोक उन्हें सीधे रास्ते पर लाने की चेष्टा करता है ।

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