Dharm hame Kya sikchha deti hai
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Answer:धर्म क्या सिखाता है?
धर्म तो जीवन में प्रकाश की तरह है जो एक व्यक्ति को सही दिशा दिखाता है और धर्म तो हर व्यक्ति के जीवन में परिलक्षित होता ही है - अगर व्यक्ति ने धर्म को अच्छे से समझा है तो जीवन में मोक्ष हासिल हो जाता है नहीं तो जीवन - पुनर्जीवन का चक्र चलता रहता है. धर्म को सही से समझने के लिए अलग अलग धर्मों और दर्शनों को समझना जरुरी है और धर्म के मर्म को समझने से ही चेतना का जागरण होता है. धार्मिक कटटरता होने से व्यक्ति धर्म के मर्म को ही समझ नहीं पाता है . धार्मिक कटटरता का कारण अज्ञान है. जब हर व्यक्ति को हर धर्म की पढ़ाई करवाई जाती है तो व्यक्ति की समझ व्यापक बनती है. धर्म का आधार जन्म नहीं होता है - धर्म व्यक्ति की रूचि और उद्देश्यों के आधार पर तय होता है. भारत में तो ये परम्परा है की एक भाई सिख तो दुसरा सनातन धर्म पालन करता है या एक भाई सनातन धर्म तो दुसरा जैन धर्म पालन करता है - ये आजादी सबको होनी चाहिए तभी व्यक्ति को आनंद मिलेगा और धार्मिक माहौल भी बनेगा. अगर आप इतिहास देखेंगे तो पाएंगे की श्री कृष्ण सनातन धर्म में भगवान् बने लेकिन उनके ही भाई जैन धर्म में तीर्थंकर बने. आज के समय में लोगों को तर्क और ज्ञान के आधार पर अपना धर्म और जीवन का मार्ग चयन का अधिकार मिलना जरुरी है. हर व्यक्ति जो धर्म की शिक्षा देता है उसको सभी धर्मों की जानकारी होनी चाहिए. मैं उदाहरण देना चाहता हूँ मेरे शहर बीकानेर के श्री ज्वाला प्रसाद शास्त्री जी का. श्री शास्त्री जी मुस्लिम, जैन और सनातन धर्म तीनों धर्मों के विद्वान् थे. वे संस्कृत, हिंदी और उर्दू तीनों भाषाओं के जानकार थे. उनकी पुस्तकें उर्दू में लिखी हुई है. वे सभी लोगों को तीनों धर्मों की जानकारी प्रदान किया करते थे - उनका ये योगदान बीकानेर शहर की संस्कृति के अनुरूप है. बीकानेर में अनेक शिक्षक और शिक्षण संस्थाएं सभी धर्मों को एक साथ सिखाते आये हैं. बीकानेर के विख्यात शिक्षक योगेंद्र कुमार रावल (जो अर्जुल लाल सेठी जी के नाती थे) अपने विद्यार्थियों को मस्जिद और मंदिर दोनों जगह ले जाते थे और उनके सारे संदेह दूर करते थे और दोनों धर्मों के बारे में विस्तार से बताते थे. बीकानेर में जब भी जैन संतों का चातुर्मास होता है तो काफी अच्छे कार्यक्रम होते हैं और सभी धर्मों के विद्वानों को बुलाया जाता है इससे सभी लोगों में आपसी समझ पैदा होती है. जैन लोग अढ़ाई करते हैं जो लेकिन आप ताज्जुब करेंगे जब आप मुस्लिम को अथाई करते हुए देखेंगे वो भी पूरी तरह से जैन परम्पराओं के अनुसार . जैन सिद्धांतों को अपनाते हुए जब मुस्लिम पूरी तरह से शाकाहारी बन जाते हैं तो आप क्या कहेंगे. आपसी सम्मान सबसे बड़ी बात है. श्री ज्वाला प्रसाद शास्त्री जी ने तो अपने जीवन के आखिरी समय में उत्तर प्रदेश में स्थित अपनी काफी बड़ी जमीन स्थानीय मुस्लिम समाज को मुफ्त में दान में दे दी थी. धर्म तो इंसान के देवत्व को जगाने के लिए हैं न की इंसान और इंसान में दुरी पैदा करने के लिए. जैसा बीकानेर में हुआ है वैसा अन्य शहरों में भी सम्भव है. योगेंद्र कुमार रावल जैसे अनेक शिक्षक हो सकते हैं.
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