Hindi, asked by YEAR2020, 9 months ago

'Dharm ke Lakshan' nibandh Hindi mein likhe ​

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Answered by lahayem444
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धर्म एक जीवनशैली है, जीवन-व्यवहार का कोड है। समझदारों, चिंतकों, मार्गदर्शकों, ऋषियों द्वारा सुझाया गया सात्विक जीवन-निर्वाह का मार्ग है, सामाजिक जीवन को पवित्र एवं क्षोभरहित बनाए रखने की युक्ति है, विचारवान लोगों द्वारा रचित नियम नैतिक नियमों को समझाइश लेकर लागू करने के प्रयत्न का एक नाम है, उचित-अनुचित के निर्णयन का एक पैमाना है और लोकहित के मार्ग पर चलने का प्रभावी परामर्श है।

निरपेक्ष अर्थ में 'धर्म' की संकल्पना का किसी पंथ, संप्रदाय, विचारधारा, आस्था, मत-मतांतर, परंपरा, आराधना-पद्धति, आध्यात्मिक-दर्शन, किसी विशिष्ट संकल्पित मोक्ष-मार्ग या रहन-सहन की रीति‍-नीति से कोई लेना-देना नहीं है। यह शब्द तो बाद में विभिन्न मतों/ संप्रदायों, आस्थाओं, स्‍थापनाओं को परिभाषित करने में रूढ़ होने लगा। शायद इसलिए कि कोई दूसरा ऐसा सरल, संक्षिप्त और संदेशवाही शब्द उपलब्ध नहीं हुआ। व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, जिम्मेदारी की पूर्ति और विशिष्ट परिस्थितियों में उचित कर्तव्य निर्वाह के स्वरूप को भी 'धर्म' कहां जाने लगा।

आइए, अब इन निम्नांकित तीन कथनों को पढ़िए। नीतिकारों और चिंतकों के ये कथन महत्वपूर्ण संकेत देते हैं। उन अंतरनिहित संकेत के मर्म को पहचानिए।

धृति:, क्षमा, दमोऽस्तेयं शौच: इन्द्रियनिग्रह:।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षमणम्।

Answered by manishiocl5
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Answer:

धर्म शब्द संस्कृत की ‘धृ’ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है धारण करना । परमात्मा की सृष्टि को धारण करने या बनाये रखने के लिए जो कर्म और कर्तव्य आवश्यक हैं वही मूलत: धर्म के अंग या लक्षण हैं । उदाहरण के लिए निम्न श्लोक में धर्म के दस लक्षण बताये गये हैं :-

धृति: क्षमा दमो स्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह: ।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम् ।

विपत्ति में धीरज रखना, अपराधी को क्षमा करना, भीतरी और बाहरी सफाई, बुद्धि को उत्तम विचारों में लगाना, सम्यक ज्ञान का अर्जन, सत्य का पालन ये छ: उत्तम कर्म हैं और मन को बुरे कामों में प्रवृत्त न करना, चोरी न करना, इन्द्रिय लोलुपता से बचना, क्रोध न करना ये चार उत्तम अकर्म हैं ।

अहिंसा परमो धर्म: सर्वप्राणभृतां वर ।

तस्मात् प्राणभृत: सर्वान् न हिंस्यान्मानुष: क्वचित् ।

अहिंसा सबसे उत्तम धर्म है, इसलिए मनुष्य को कभी भी, कहीं भी,किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए ।

न हि प्राणात् प्रियतरं लोके किंचन विद्यते ।

तस्माद् दयां नर: कुर्यात् यथात्मनि तथा परे ।

जगत् में अपने प्राण से प्यारी दूसरी कोई वस्तु नहीं है । इसीलिए मनुष्य जैसे अपने ऊपर दया चाहता है, उसी तरह दूसरों पर भी दया करे ।

जिस समाज में एकता है, सुमति है, वहाँ शान्ति है, समृद्धि है, सुख है, और जहाँ स्वार्थ की प्रधानता है वहाँ कलह है, संघर्ष है, बिखराव है, दु:ख है, तृष्णा है ।

धर्म उचित और अनुचित का भेद बताता है । उचित क्या है और अनुचित क्या है यह देश, काल और परिस्थिति पर निर्भर करता है । हमें जीवनऱ्यापन के लिए आर्थिक क्रिया करना है या कामना की पूर्ति करना है तो इसके लिए धर्मसम्मत मार्ग या उचित तरीका ही अपनाया जाना चाहिए । हिन्दुत्व कहता है -

अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वत: ।

नित्यं सन्निहितो मृत्यु: कर्र्तव्यो धर्मसंग्रह: ।

यह शरीर नश्वर है, वैभव अथवा धन भी टिकने वाला नहीं है, एक दिन मृत्यु का होना ही निश्चित है, इसलिए धर्मसंग्रह ही परम कर्त्तव्य है ।

सर्वत्र धर्म के साथ रहने के कारण हिन्दुत्व को हिन्दू धर्म भी कहा जाता है ।

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