dharmik ktrta Hindi (essay)
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hshehe
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धर्म आदिकाल से ही मानव के लिए प्रमुख प्रेरक तत्व रहा है । प्राचीनकाल में धर्म का कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं था, अत: प्राकृतिक शक्तियों से भयभीत होना तथा इन शक्तियों की पूजा करना धर्म का एक सर्वमान्य स्वरूप बन गया ।
विश्व की विभिन्न प्राचीन सभ्यताओं के धर्मों एवं मान्यताओं में धर्म के इसी विलक्षण स्वरूप की प्रबलता रही । भारत में ऋग्वैदिक काल से धर्म के एक नए धरातल की रचना हुई, यहीं से यज्ञ, मंत्र और ऋचाओं का प्रचलन आरंभ हुआ । मूर्तिपूजा और कर्मकांड के साथ-साथ धार्मिक अंध-विश्वासों ने भी अपना स्थान बना लिया ।
इसके बाद भारत सहित दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में कई धर्म प्रवर्तन हुए, साथ-साथ विभिन्न धर्मों और सभ्यताओं के मध्य अंत: क्रिया भी आरंभ हुई । इस तरह भारत तथा अन्य देश बहुधर्मी देश बन
गए । चूँकि हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख आदि धार्मिक संप्रदायों का गठन भारत में ही हुआ अत: वैसे भी यहाँ धार्मिक विविधता का होना स्वाभाविक था ।
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