dhool ke roop ko spashta kare
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लेखक ने पाठ “धूल” में धूल का महत्त्व स्पष्ट किया है। लेखक आज की संस्कृति की आलोचना करते हुए कहता है कि शहरी लोग धूल की महत्ता को नहीं समझते, उससे बचने की कोशिश करते हैं। जिस धूल मिट्टी से हमारा शरीर बना है, हम उसी से दूर रहना चाहते हैं। परंतु आज का नगरीय जीवन इससे दूर रहना चाहता है जबकि ग्रामीण सभ्यता का वास्तविक सौंदर्य ही “धूल” है।
hope it will help u.
shiv135:
I want the explanations of the types of dhul
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