dhotak ki manak vartani
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वर्तनी के विविध पहलुओं को लेकर १९वीं शताब्दी के अन्तिम चरण से ही विविध प्रयास होते रहे हैं। इसी तारतम्य में केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा वर्ष 2003 में देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी के मानकीकरण के लिए अखिल भारतीय संगोष्ठी का आयोजन किया था। इस संगोष्ठी में मानक हिंदी वर्तनी के लिए निम्नलिखित नियम निर्धारित किए गए थे जिन्हें सन २०१२ में आईएस/IS 16500 : 2012 के रूप में लागू किया गया है।
हिन्दी वर्तनी के मानकीकरण का इतिहास
वर्तमान समय में मानक हिन्दी वर्तनी का कार्यक्षेत्र केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय का है।
हिन्दी वर्तनी के मानकीकरण की दिशा में कई दिग्गजों ने अपना योगदान दिया, जिनमें से आचार्य किशोरीदास वाजपेयी तथा आचार्य रामचंद्र वर्मा के नाम उल्लेखनीय हैं। हिन्दी भाषा के संघ और कुछ राज्यों की राजभाषा स्वीकृत हो जाने के फलस्वरूप देश के भीतर और बाहर हिन्दी सीखने वालों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हो जाने से हिन्दी वर्तनी की मानक पद्धति निर्धारित करना आवश्यक और कालोचित लगा, ताकि हिन्दी शब्दों की वर्तनियों में अधिकाधिक एकरूपता लाई जा सके। तदनुसार, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार ने १९६१ में हिन्दी वर्तनी की मानक पद्धति निर्धारित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की। इस समिति ने अप्रैल १९६२ में अंतिम रिपोर्ट दी। समिति की चार बैठकें हुईं जिनमें गंभीर विचार-विमर्श के बाद वर्तनी के संबंध में एक नियमावली निर्धारित की गई। समिति ने तदनुसार, १९६२ में अपनी अंतिम सिफारिशें प्रस्तुत कीं जो सरकार द्वारा अनुमोदित की गईं और अंततः हिन्दी भाषा के मानकीकरण की सरकारी प्रक्रिया का श्रीगणेश हुआ।
केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने प्रथमत: 1968 में “हिंदी वर्तनी का मानकीकरण” नाम से लघु पुस्तिका प्रकाशित की। वर्ष 1983 में इस पुस्तिका का नि:शुल्क संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण “देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी का मानकीकरण” प्रकाशित किया गया। इस पुस्तिका की लगातार बढ़ती माँग को देखते हुए वर्ष 1989 में इसका पुनर्मुद्रण कराया गया तथा विभिन्न हिंदी सेवी संस्थाओं, कार्यालयों, शिक्षण संस्थानों में नि:शुल्क वितरण कराया गया ताकि अधिक-से-अधिक संस्थाओं में हिंदी के मानक रूप का प्रयोग बढ़े। राजभाषा हिंदी के संदर्भ में सभी मंत्रालयों, राज्यों, सरकारों, शैक्षिक संस्थाओं एन.सी.ई.आर.टी आदि, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं आदि ने भाषा में एकरूपता लाने के लिए इस मानकीकरण को आधिकारिक रूप से अपनाया।[1]
वर्ष 1968 के मानकीकरण का मुख्य आधार प्रयोक्ता और टंकण यंत्र रहा था। सूचना के आज के युग में हिंदी भाषा के मानकीकरण को पुन: संशोधित एवं परिवर्तित करने तथा देवनागरी लिपि के लिए कंप्यूटरीकृत यूनीकोड के निर्माण करने की आवश्यकता अनुभव की गई। इसी तारतम्य में केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा वर्ष 2003 में देवनागरी लिपि तथा हिंदी वर्तनी के मानकीकरण के लिए अखिल भारतीय संगोष्ठी का आयोजन किया था। इस संगोष्ठी में मानक हिंदी वर्तनी के लिए जो नियम निर्धारित किये गये थे उनका विवरण नीचे दिया गया है।“देवनागरी लिपि और हिंदी वर्तनी का मानकीकरण” पुस्तिका में मानक हिंदी वर्णमाला, मानक हिंदी वर्तनी, विरामादि चिह्न, कोशों में अकारादिक्रम, परिवर्धित देवनागरी लिपि आदि विषय तथा पैराग्राफ़ों के विभाजन तथा उपविभाजन से संबंधित मानक दी गई है।
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