Social Sciences, asked by mihir12229, 7 months ago

dhrumaa keबारे में संक्षिप्त में लिखें​

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Answered by perwezakhtar2382
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Answer:

मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के आधार पर चन्द्रशेखर आजाद का संकल्प उदाहरणसहित स्पष्ट कीजिए।

था

‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के संकल्प (प्रथम) सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए। [2011, 12, 17]

था

‘मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के आधार पर ‘संकल्प’ (प्रथम) सर्ग का सारांश लिखिए। [2010, 12, 15]

था

‘मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के आधार पर तत्कालीन भारत की स्थिति का वर्णन संक्षेप में कीजिए। [2010]

था

‘मातृभूमि के लिए खण्डकाव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए कि अंग्रेजों ने भारतवर्ष पर बहुत अत्याचार किये।

था

‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का सारांश लिखिए। [2016, 18]

उत्तर

डॉ० जयशंकर त्रिपाठी द्वारा रचित ‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य तीन सर्गों में विभक्त है

संकल्प,

संघर्ष तथा

बलिदान।

प्रथम सर्ग में चन्द्रशेखर आजाद के काशी में छात्र-जीवन का प्रसंग है। चन्द्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के भाँवरा ग्राम में हुआ था। बड़े होने पर वे काशी नगरी में संस्कृत पढ़ने गये। उस समय भारत में ब्रिटिश शासन का दमन-चक्र चल रहा था। (UPBoardSolutions.com) भारतीय जनता के दमन के लिए रॉलेट ऐक्ट बनाया गया था, जिसके अनुसार देशभक्तों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें दण्डित किया जाता था। पुलिस जिसको भी द्रोही कह देती थी, वही दण्डित कर दिया जाता था। इस राष्ट्र-विरोधी ऐक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर में सन् 1919 ई० में जलियाँवाला बाग में एक विशाल सभा आयोजित की गयी थी। वहाँ देशभक्तों के भाषण हो रहे थे, उसी समय जनरल डायर ने वहाँ पहुँचकर गोलियों की बौछार करके निरीह जनता को भून डाला। मरने वालों में बच्चों और औरतों की संख्या अधिक थी। इतने से ही डायर की भूख शान्त नहीं हुई। कितने ही बेगुनाहों को हथकड़ियाँ डालकर जेल में ढूंस दिया गया। 150 गज लम्बी सँकरी गली से नर-नारियों को पेट के बल चलाकर यातनाएँ दी गयीं।।

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अंग्रेजों की उक्त दमन की घटना ‘मर्यादा’ नामक राष्ट्रीय पत्र की सुर्वी में (प्रमुखता से) प्रकाशित हुई। इस घटना को पढ़कर किशोर चन्द्रशेखर का मुख क्रोध से तमतमा उठा और आँखें करुणा से भर आयीं। उसने संस्कृत सूत्रों को रटना छोड़कर भारतमाता को यातना से मुक्ति दिलाने का निश्चय किया और भारतमाता के गुलाम रहते अपना जीवन व्यर्थ समझा। आजाद ने संकल्प लिया कि जब तक वह भारतमाता को स्वतन्त्र नहीं करा देगा, तब तक अंग्रेजों से लड़ता रहेगा-

इस जन्मभूमि के लिए प्राण

” मैं अपने अर्पित कर दूंगा,

आजाद न होगी जब तक यह

मैं कर्म अकल्पित कर दूंगा।

उसी समय महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों का असहयोग करने के लिए आह्वान किया। उनकी एक पुकार पर देशभक्त छात्रों ने विद्यालय तथा राष्ट्रभक्तों ने नौकरी छोड़ दी और स्वतन्त्रता-संग्राम में कूद पड़े। वे सरकारी कार्यालयों पर धरना देते थे। जब पुलिस अश्रु-गैस के गोले छोड़ती और लाठियाँ बरसाती थी तब देशभक्त लाठियाँ खाते और सवारों से कुचले जाते थे, फिर भी इंकलाब का नारा लगाने से न रुकते थे। चन्द्रशेखर को देशद्रोह के अभियोग में (UPBoardSolutions.com) बन्दी बना लिया गया था। मजिस्ट्रेट के द्वारा परिचय पूछने पर उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वाधीन’ तथा घर ‘जेलखाना’ बताया। मजिस्ट्रेट बालक के साहस को देखकर स्तम्भित रह गया। उसने उसे 15 बेंत लगाये जाने का दण्ड दिया। चन्द्रशेखर प्रत्येक बेंत के प्रहार पर ‘भारतमाता की जय’ के नारे लगाता रहा। उसके इस कार्य ने जनता में असीम साहस का संचार किया-

पर बालक वह अंगारा था

आँखों में उग्र उजाला था,

भगता अँधियार गुलामी का

देखता जिधर वह प्यारा था।

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जैसे ही वह कारागार से मुक्त हुआ, उसका भव्य स्वागत किया गया और उसके शौर्य का बखान किया गया। तभी से उस बालक को ‘आजाद’ कहकर सम्मानित किया जाने लगा।

प्रश्न 2

‘मातृभूमि के लिए’ खण्डकाव्य के आधार पर द्वितीय सर्ग (संघर्ष सर्ग) का सारांश (कथावस्तु | या कथानक) लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 14, 17]

उत्तर

देश में असहयोग आन्दोलन के मन्द पड़ते ही चन्द्रशेखर का झुकाव शस्त्र-क्रान्ति की ओर हो गया। उन्हें स्वतन्त्रता-संग्राम के लिए बमों और पिस्तौलों का निर्माण कराने के लिए धन की आवश्यकता हुई। इसके लिए उन्होंने मोटर ड्राइवरी सीखी और एक मठाधीश के शिष्य बने। इन्होंने सरदार भगतसिंह, अशफाक उल्ला खाँ, रामप्रसाद बिस्मिल, मन्मथनाथ गुप्त, शचीन्द्रनाथ बख्शी आदि के साथ मिलकर एक मजबूत संगठन बनाया। योजना के अनुसार इन सबने 9 अगस्त, 1925 ई० को काकोरी स्टेशन के पास रेलगाड़ी से सरकारी खजाने को लूटने में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। इस काण्ड में पकड़े जाने पर रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खाँ को फाँसी हो गयी, शचीन्द्रनाथ बख्शी को आजीवन कारावास और 15 क्रान्तिकारियों को 3 साल की जेल की सजा हुई, परन्तु चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह सरकार की नजर से बच निकले। इन्हें पकड़ने के सारे सरकारी प्रयास विफल हो गये।।

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