Hindi, asked by Shaurya459, 9 months ago

dhvani ki aatmkatha - is par anuched likhe (in hindi )​

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Answered by himanshisharma748
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Explanation:

ध्वनि की आत्मकथा

प्रतिदिन असंख्य ध्वनियाँ हमारे कर्णद्वार से होते हुए स्मृति में समाहित होती हैं ।इनके बिना इस संसार का विचार एक परिकल्पना मात्र है। परन्तु क्या आपने कभी सोचा है ,कि यदि ध्वनि को अवसर मिले अपनी कथा कहने का,तो वो कैसी होगी ?आइये आज सुनते हैं ध्वनि की आत्मगाथा ,उसी के शब्दों में -

ध्वनि की आत्मकथा

घर्षण से उतपन्न हुई

न छिपती,पर न दिखती हूँ,

कर्ण में अस्तित्व मेरा

तरंगित जा पहुँचती हूँ,

कभी मैं हूँ मधुर चंचल ,

कभी कर्कश ,कभी गंभीर

न कोई है दिशा न है गली

इकसीध सी मेरी,

हवा ही इक सखी मेरी,

उसी के संग बहती हूँ,

मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं कहती हूँ ।

मैं बनती ताल तबलों की,

कभी स्वर शारदे की हूँ

मुझे संगीत कहते तुम,तुम्हारे मन में बस्ती हूँ,

सरल एकांत में भी मैं ,तुम्हारे साथ होती हूँ

विषाद ग्रस्त हो कोई,वजह मुस्कान की बनती

मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं कहती हूँ ।

मैं गर्जन बादलों की हूँ,

व टिप -टिप बारिशों की भी

मैं चह -चह पक्षियों की हूँ ,

व कल - कल हूँ नदी की भी

मैं खन -खन चूड़ियों की हूँ

व घुंगरू संग झनकती हूँ

मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं कहती हूँ ।

मैं हूँ हर युद्ध का आरम्भ,

संदेसा प्रेम का भी हूँ

उमंग उत्साह उत्सव की ,

अंदेसा विघ्न का भी हूँ

न जिसने रौशनी देखी ,मैं उसका भी सहारा हूँ

जो दिल तक और ख़ुदा तक है पहुँचती ,

मैं वो धारा हूँ

तू चाहे तो जगत में ,

मैं तेरी पहचान बनती हूँ

मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं कहती हूँ ।

तकनीक प्रबल है अब इतनी ,

कि मुझको बांध लेती है

जहाँ न मैं पहुँच पाती,

वहाँ से जोड़ देती है

मरीज़ों के कई उपचार में,

उपयोग होती हूँ

बढ़ी रफ़्तार है मेरी ,

नयी हर रोज़ होती हूँ

परन्तु वाहनों की भीड़ ने ,

जलते पटाखों ने ,

मुझे तीखा ,तेरा दुश्मन ,

प्रदूषित है बना डाला

न ख़ुद पर कोई बस मेरा,

न तुमको रोक सकती हूँ

लेकिन देख कर यह दुर्दशा

मैं क्षुब्द होती हूँ

न मुझको तुम बनाओ

किसी भी अपहानि का हथियार ,

न तुम सुन पाओ चाहे ,

चीख कर नित दिन मैं कहती हूँ

न कोई अंत है मेरा ,

अनाहत नाद भी मैं हूँ,

शुन्य में भी, मौन में भी ,

गूँजती मैं हूँ

मैं ध्वनि हूँ,ख़ुद कथा अपनी मैं कहती हूँ

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