dialog writing on varis kon in hindi of 8 std
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Hey There !!
एक राजा था । उसके चार बेटियाँ थीं । राजा ने सोचा कि इन चारों में से जो सबसे बुद्धिमती होगी, उसे ही अपना राजपाट सौंपेगा । इसका फैसला कैसे हो? वह सोचने लगा । अंत में उसे एक उपाय सूझ गया ।
उसने एक दि न चारों बेटियों को अपने पास बु लाया । सभी को गेहँू के सौ-सौ दाने दि ए और कहा, ‘‘इसे तुम अपने पास रखो, पाँच साल बाद मैं जब इन्हें माँगँूगा तब तु म सब मुझे वापस कर देना । ’’
गेहँू के दाने लेकर चारों बहनें अपने-अपने कमरे में लौट आईं । बड़ी बहन ने उन दानों को खिड़की के बाहर फेंक दिया । उसने सोचा, ‘आज से पाँच साल बाद पिता जी को गेहँू के इन दानों की याद रहेगी क्या ? और जो याद भी रहा तो क्या हुआ…, भंडार से लेकर दे दूँगी ।’
दूसरी बहन ने दानों को चाँदी की एक डि ब्बी में डालकर उसे मखमल के थैले में बंद करके सुरक्षा से अपनी संदूकची में डाल दिया । सोचा, ‘पाँच साल बाद जब पिता जी ये दाने माँगेंगे, तब उन्हें वापस कर दूँगी ।’
तीसरी बहन बस सोचती रही कि इसका क्या करूँ । चौथी और छोटी बहन तनिक बच्ची थी । शरारतें करना उसे बहुत पसंद था । उसे गेहँू के भुने दाने भी बहुत पसंद थे । उसने दानों को भुनवाकर खा डाला और खेल में मग्न हो गई ।
तीसरी राजकुमारी को इस बात का यकीन था कि पिता जी ने उन्हें यँू ही ये दाने नहीं दि ए होंगे । जरूर इसके पीछे कोई मकसद होगा ।
पहले तो उसने भी अपनी दूसरी बहनों की तरह ही उन्हें सहेजकर रख देने की सोची, लेकि न वह ऐसा न कर सकी । दो-तीन दि नों तक वह सोचती रही, फिर उसने अपने कमरे की खिड़की के पीछेवाली जमीन में वे दाने बो दि ए । समय पर अंकुर फूटे । पौधे तैयार हुए, दाने नि कले । राजकुमारी ने तैयार फसल में से दाने नि काले और फि र से बो दिए । इस तरह पाँच वर्षों में उसके पास ढेर सारा गेहँू तैयार हो गया ।
पाँच साल बाद राजा ने फि र चारों बहनों को बु लाया और कहा- ‘‘आज से पाँच साल पहले मैंने तु म चारों को गेहँू के सौ-सौ दाने दिए थे और कहा था कि पाँच साल बाद मुझे वापस करना । कहाँ हैं वे दाने?’’
बड़ी राजकुमारी भंडार घर जाकर गेहँू के दाने ले आई और राजा को दे दिए । राजा ने पूछा, ‘‘क्या ये वही दाने हैं जो मैंने तुम्हें दिए थे ?’’
पहले तो राजकुमारीने ‘हाँ’ कह दिया । मगर राजा ने फिर कड़ककर पूछा, तब उसने सच्ची बात बता दी ।
राजा ने दूसरी राजकुमारी से पूछा – ‘‘तुम्हारे दाने कहॉं हैं ?’’
दूसरी राजकुमारी अपनी संदूकची में से मखमल के खोलवाली डि ब्बी उठा लाई, जिसमें उसने गेहँू के दाने सहेजकर रखे थे । राजा ने उसे खोलकर देखा – दाने सड़ गए थे ।
तीसरी राजकुमारी से पूछा – ‘‘तुमने क्या किया उन दानों का ?’’
तीसरी ने कहा – ‘‘मैं इसका उत्तर आपको अभी नहीं दँूगी, क्योंकि जवाब पाने के लिए आपको यहाँ से दूर जाना पड़ेगा और मैं वहाँ आपको कल ले चलँूगी ।’’
राजा ने अब चौथी और सबसे छोटी राजकुमारी से पूछा । उसने उसी बेपरवाही से जवाब दिया-‘‘उन दानों की कोई कीमत है पिता जी? वैसे तो ढेरों दाने भंडार में पड़े हैं । आप तो जानते हैं न, मुझे गेहँू के भुने दाने बहुत अच्छे लगते हैं, सो मैं उन्हें भुनवाकर खा गई । आप भी पिताजी, किन-किन चक्करों में पड़ जाते हैं।’’ सभी के उत्तर से राजा को बड़ी निराशा हुई । चारों में से अब उसे केवल तीसरी बेटी से ही थोड़ी उम्मीद थी ।
दूसरे दिन तीसरी राजकुमारी राजा के पास आई । उसने कहा- ‘‘चलिए पिता जी, आपको मैं दि खाऊँ कि गेहँू के वे दाने कहाँ हैं ?’’
राजा रथ पर सवार हो गया । रथ महल, नगर पार करके खेत की तरफ बढ़ चला । राजा ने पूछा, ‘‘आखिर कहाँ रख छोड़े हैं तु मने वे सौ दाने ? इन सौ दानों के लि ए तु म मुझे कहाँ-कहाँ के चक्कर लगवाओगी ?’’
तब तक रथ एक बड़े-से हरे-भरे खेत के सामने आकर रुक गया । राजा ने देखा – सामने बहुत बड़े खेत में गेहँू की फसल थी । उसकी बालियाँ हवा में झूम रही थीं, जैसे राजा को कोई खुशी भरा गीत सुना रही हों । राजा ने हैरानी से राजकुमारी की ओर देखा । राजकुमारी ने कहा- ‘‘पिता जी, ये हैं वे सौ दाने, जो आज लाखों-लाख दानों के रूप में आपके सामने हैं । मैंने उन सौ दानों को बोकर इतनी अधिक फसल तैयार की है ।’’
राजा ने उसे गले लगा लिया और कहा- ‘‘अब मैं निश्चिंत हो गया । तुम ही मेरे राज्य की सच्ची उत्तराधिकारी हो ।’’
Hope it helps yaa cheerio...
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