dinker ki kavita or parshuraam ke updesh aaj ke samay mai kitni prasangik hai
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भगवान परशुराम का आदर्श चरित्र प्रत्येक युग और देश में सदा प्रासंगिक है। वे यथार्थ की कठोर प्रस्तर शिला पर सुप्रतिष्ठित हैं और मानव मन की फूल से भी कोमल तथा वज्र से भी कठोर-‘वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि’ अन्तः वृत्तियों के संवाहक हैं। मनुष्य में ‘सत्’ और ‘असत्’ का द्वन्द्व सनातन है। उसके ‘सत्’ का संवर्धन करने के लिए ‘शास्त्र’ और ‘असत्’ का नियंत्रण करने के लिए ‘शस्त्र’ का विधान सभ्यता के अरूणोदय काल में किया गया। आज भी मानव चरित्र सत् और असत् से घिरा है, अतः युग-युगांतर की तथाकथित विकास यात्रा के बाद आज भी शास्त्र और शस्त्र की सत्ता स्वीकृत है।
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