diwani ki hasti yaha kis bandhan ko todne ki baat ki jaa rhi hai
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यहाँ भिखमंगों का उल्लेख है और लुटाना भी है) कवि दूसरों को प्यार व खुशियाँ देकर खुद बिना कुछ लिए चला जाता है। हम अपने बंधन तोड़ चले। (यहाँ स्वयं बंधकर फिर स्वयं अपने बंधनो को तोड़ने की बात की गई है।)
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