Diwano ki hasthi chapter (diwano ne abhaavgrast aur khushiyon se vanchit logo mein apna pyaar kaise lutaaya?
Answers
आए बन कर उल्लास अभी,
आँसू बन कर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले?
दीवानों की हस्ती भावार्थ : दीवानों की हस्ती कविता की इन पंक्तियों में कवि ने कहा है कि दीवाने-मस्तमौला लोग जहाँ भी जाते हैं, वहाँ का माहौल ख़ुशियों से भर जाता है। फिर जब वो उस जगह से जाने लगते हैं, तो सब काफी दुखी हो जाते हैं। लोगों को उनके जाने का पता तक नहीं चलता। वो तो मन में ही अफ़सोस करते रह जाते हैं कि उन्हें मालूम ही नहीं हुआ, कवि कब आए और कब चले गए।
इस प्रकार कवि कह रहे हैं कि एक जगह टिककर रहना उनका स्वभाव नहीं है, उन्हें घूमते रहना पसंद है। इसीलिए वो अक्सर अलग-अलग जगह आते-जाते रहते हैं।
किस ओर चले? यह मत पूछो,
चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले,
दीवानों की हस्ती भावार्थ : दीवानों की हस्ती कविता में आगे कवि कहते हैं कि मुझसे मत पूछो में कहाँ जा रहा हूँ। मुझे तो बस चलते रहना है, इसीलिए मैं चले जा रहा हूँ। मैनें इस दुनिया से कुछ ज्ञान प्राप्त किया है, अब मैं उस ज्ञान को बाकी लोगों के साथ बाँटना चाहता हूँ। इसलिए मुझे निरंतर चलते रहना होगा।
दो बात कही, दो बात सुनी।
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।
छककर सुख-दुख के घूँटों को
हम एक भाव से पिए चले।
दीवानों की हस्ती भावार्थ : भगवती चरण वर्मा दीवानों की हस्ती कविता की इन पंक्तियों में कह रहे हैं कि वो जहाँ भी जाते हैं, लोगों से ख़ूब घुलते-मिलते हैं, उनके सुख-दुख बांटते हैं। कवि के लिए सुख और दुख, दोनों भावनाएं एक समान हैं, इसलिए, वो दोनों परिस्थितियों को शांत रहकर सहन कर लेते हैं।
इस तरह, कवि अपने मार्ग पर चलते हुए, लोगों का दुख-सुख बाँटते हैं और उन्हें एक समान ढंग से ग्रहण करके आगे बढ़ जाते हैं।
हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,
हम एक निसानी – सी उर पर,
ले असफलता का भार चले।
दीवानों की हस्ती भावार्थ : दीवानों की हस्ती कविता की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि ये दुनिया बड़ी ही स्वार्थी है। लोग स्वार्थ में इतने अंधे हैं कि बस भिखमंगों की तरह सबसे कुछ ना कुछ माँगते ही रहते हैं। मगर, कवि स्वार्थी नहीं हैं, इसलिए उन्होंने स्वार्थी दुनिया पर बिना किसी शर्त के अपना अनमोल प्यार लुटाया है। लोगों को प्यार बाँटने का खूबसूरत एहसास हमेशा कवि के दिल में रहता है।
उन्होंने जीवन में काफी बार असफलता और हार का स्वाद भी चखा है, लेकिन इसका बोझ उन्होंने कभी किसी दूसरे व्यक्ति पर नहीं डाला। इस तरह कवि ने स्वार्थी दुनिया को भरपूर प्यार दिया और अपनी नाकामयाबी का भार हमेशा स्वयं ही उठाया है।
अब अपना और पराया क्या?
आबाद रहें रुकने वाले!
हम स्वयं बँधे थे और स्वयं
हम अपने बँधन तोड़ चले।
दीवानों की हस्ती भावार्थ : दीवानों की हस्ती कविता की इन अंतिम पंक्तियों में कवि कहते हैं कि अब उनके लिए दुनिया में कोई भी अपना या पराया नहीं है। जो लोग एक मंज़िल पाकर, वहीं ठहर जाना चाहते हैं, उन्हें कवि ने सुखी और आबाद रहने का आशीर्वाद दिया है। मगर, कवि ख़ुद एक जगह बंध कर नहीं रहना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने अपने सभी सांसारिक बंधन तोड़ दिये हैं और अब वो अपने चुने हुए मार्ग पर आगे बढ़ते जा रहे हैं। वो इसी में ख़ुश और संतुष्ट हैं।