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(क) वर्षों से मानसून की खराब स्थिति ने देश के जल संकट को गहरा दिया है।
आबादी लगातार बढ़ रही है, जबकि जल संसाधन सीमित हैं। अगर अभी भी हमने जल संरक्षण और उसके समान वितरण के लिए उपाय न किए, तो मराठवाड़ा जैसा सूखा पूरे देश को ग्रस लेगा। जल समस्या पर नीति आयोग ने कुछ ऐसे आंकड़े और समाधान दिए हैं, जिन पर वाकई ध्यान देने की जरूरत है।
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में विश्व की 17 प्रतिशत जनसंख्या रहती है, जबकि इसके पास विश्व के शुद्ध जल संसाधन का मात्र 4 प्रतिशत ही है।
किसी भी देश में अगर प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1,700 क्यूबिक मीटर से नीचे जाने लगे तो उसे जल संकट की चेतावनी और अगर 1,000 क्यूबिक मीटर से नीचे चला जाए, तो उसे जल संकटग्रस्त माना जाता है। भारत में यह फिलहाल 1,544 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति आ गया है, जिसे जल की कमी की चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है।
नीति आयोग ने यह भी बताया है कि उपलब्ध जल का 84 प्रतिशत खेती में, 12 प्रतिशत उद्योगों में और 4 प्रतिशत घरेलू कामों में उपयोग होता है।
हम चीन और अमेरिका की तुलना में एक ईकाई फसल पर दो से चार गुना जल अधिक उपयोग करते हैं।
देश की लगभग 55 प्रतिशत कृषि भूमि पर सिंचाई के साधन नहीं हैं। ग्याहरवीं योजना के अंत तक भी लगभग13 करोड़ हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के अंतर्गत लाने का प्रवधान था। इसे बढ़ाकर अधिक-से-अधिक 1.4 करोड़ हेक्टेयर तक किया जा सकता है। इसके अलावा भी काफी भूमि ऐसी बचेगी, जहाँ सिंचाई असंभव होगी और वह केवल मानसून पर निर्भर रहेगी।
भूजल का लगभग 60 प्रतिशत सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जाता है। 80 प्रतिशत घरेलू जल आपूर्ति भूजल से ही होती है। इससे भूजल का स्तर लगातार घटता जा रहा है।
समाधान
लोगों में जल के महत्व के प्रति जागरूकता लाए जाने की बहुत जरूरत है।
ऐसे बीज तैयार करने की जरूरत है, जिनमें पानी की कम खपत हो।
हमें एक ऐसी सक्रिय नीति बनाने की जरूरत है, जो जल संधाधनों पर पूरा नियंत्रण रखे।
इन सबसे ऊपर अब जल संबंधी राष्ट्रीय कानून बनाया जाना चाहिए। हांलाकि संवैधानिक तौर पर जल का मामला राज्यों से संबंधित है, लेकिन अभी तक किसी राज्य ने अलग-अलग क्षेत्रों को जल आपूर्ति संबंधी कोई निश्चित कानून नहीं बनाए हैं।
(ख) वर्तमान समय में अगर हमें कुछ पाना है, किसी भी क्षेत्र में कुछ करके दिखाना है, जीवन को खुशी से जीना है, तो इन सबके लिए आत्मविश्वास का होना परम आवश्यक है। आत्मविश्वास में वह शक्ति है जिसके माध्यम से हम कुछ भी कर सकते है। आत्मविश्वास से हमारी संकल्प शक्ति बढ़ती है और संकल्प शक्ति से बढ़ती है हमारी आत्मिक शक्ति।
इमर्सन का कथन है- ''संसार के सारे युद्धों में इतने लोग नहीं हारते, जितने कि सिर्फ घबराहट से।' अतः अपने ऊपर विश्वास रखकर ही आप दुनिया में बड़े से बड़ा काम सहज ही कर सकते हैं और अपना जीवन सफल बना सकते हैं। मधुमक्खी कण-कण से ही शहद इकट्ठा करती है। उसे कहीं से इसका भंडार नहीं मिलता। उसके छत्ते में भरा शहद उसके आत्मविश्वास और कठिन परिश्रम का ही परिणाम है।
दुनिया में ईश्वर ने सभी को अनंत शक्तियां प्रदान की हैं। हर किसी में कोई न कोई खास बात होती है। बस, जरूरत है अपने अंदर की उस खास शक्ति को पहचानने की, उसे निखारने की। जो काम दूसरे लोग कर सकते हैं, वो काम आप क्यों नहीं कर सकते? अपने आप पर भरोसा कीजिए फिर दुनिया भी आप पर भरोसा करेगी।
महात्मा गांधी भी इस आत्मविश्वास के बल पर सत्य और अहिंसा के अस्त्र बनाकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। अंततः वे भारत माता की दासता रूपी बेड़ी को काटने में सफल रहे। अब्राहम लिंकन ने अथक प्रयास कर दासों को मालिकों के शिकंजे से मुक्त कराया। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था कि मैंने अपने ईश्वर को वचन दिया है कि दासों की मुक्ति का कार्य अवश्य पूरा करूंगा।
इसी आत्मविश्वास ने कोलंबस को अमेरिका की खोज में सहयोग दिया था। नेपोलियन ने इसी शक्ति से ओतप्रोत होकर अपने सेनापति से कहा था कि यदि आल्पस पर्वत हमारा मार्ग रोकता है तो वह नहीं रहेगा और सचमुच उस विशाल पर्वत को काटकर रास्ता बना लिया गया।
आत्मविश्वास मनुष्य के अंदर ही समाहित होता है। आपको इसे कहीं और अन्य जगह से लाने की जरूरत नहीं है। यह आपके अंदर ही है, बस जरूरत है अपने अंदर की आंतरिक शक्तियों को इकट्ठा कर अपने आत्मविश्वास को मजबूत करने की।