Hindi, asked by dev3581, 1 year ago

doctor par kahani 600-700

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Answered by Adnan2406
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यार! सब घर-परिवार में आराम से रह रहे हैं. तेरे लिए सभी चिंता करते हैं. इतना सूना जीवन, अकेला, इस उम्र में… पर क्या करें? तूने तो अपने लिए कभी सोचा ही नहीं. अरे, डॉक्टर तो हम सभी थे, पर तेरी तरह अधूरा तो कोई भी नहीं रहा.”
राजीव के जाने के बाद डॉक्टर साहब कुर्सी पर ढीले पड़ गए.

‘डॉक्टर साहब!’ घर-बाहर, छोटे-बड़े सभी इसी नाम से जानते हैं उनको. यही उनका परिचय भी है और पहचान भी. इस पहचान के चलते लोग उनके मम्मी-पापा द्वारा दिया गया नाम ‘सत्य प्रकाश’ भूल ही गए हैं. पापा के कुलगुरु ने उनकी प्यार पाने के लिए पूरे मेडिकल कॉलेज के युवा तड़प रहे थे, पर वो तो समर्पित हो चुकी थी अपने से 15 वर्ष बड़े अपने सर कि ह़फ़्ते से पहले उन्होंने अस्पताल में पैर रखा तो सारे के सारे अनिश्‍चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे. वे जानते हैं कि ये लोग उनका आदर-सम्मान ही नहीं करते, बल्कि दिल से बेहद प्यार भी करते हैं. जब बुख़ार था, तब एक-दो डॉक्टर दिन-रात घर में ही रहकर पहरेदारी करते रहे. अब बुख़ार उतरा तो उनसे पीछा छूटा.

“भाग्यवान है मेरे भाई. तुझे सब चाहनेवाले ही मिले. वैसे यह नई उम्र के लड़के हमसे ज़्यादा समझदार हैं. पर सत्य! काम करने की भी सीमा होती है. ढलती उम्र में थकान को अनदेखा कैसे कर सकता है तू?”
“ढलती उम्र, थकान… ये सारे शब्द मेरे लिए नए और अजीब-से लग रहे हैं. मुझे तो ऐसा कुछ भी नहीं लगता.”
“लगे या न लगे, पचास को पार कर आए हैं हम.”
“पर मुझे लगता है, मैं अभी-अभी पच्चीस का हुआ हूं. तूने अपना यह क्या हाल बना लिया है? मन भर फ़ालतू चर्बी जमा करेगा शरीर में तो पचास क्या सत्तर वर्ष की थकान आएगी.”
“क्या करूं यार? घरेलू पत्नी किसी को न मिले. उसे कुकिंग छोड़ दुनिया में कुछ भी पसंद नहीं. रोज़ नई-नई चीज़ बनाती और खिलाती है.”
“मज़े में है यार.”
“अब घर है है तेरी. आया है तो महीने-दो महीने रहकर जा. देख, देश कहां पहुंचा है. कितनी ऊंचाई को छू रहा है.”
“नहीं होगा यार, बच्चे नहीं आना चाहते. मन तो हर पल रोता है अपनी माटी के लिए, पर… फिर भी बच्चे अपना दाना आप चुगने लगें तो दोनों बूढ़े-बूढ़ी लौट आने का सपना देख रहे हैं.”
“मैंने तुझको तभी मना किया था.”
“इतनी गहरी सोच कहां थी तब? लालच में चला गया था. अरे हां, सुमन भी वहीं है, हमारे पड़ोस में ही रोज़ का आना-जाना, उठना-बैठना है.’
“सुमन! लंदन में है?”
“हां, अरे, डॉक्टर तो हम सभी थे, पर तेरी तरह अधूरा तो कोई भी नहीं रहा.”
राजीव के जाने के बाद डॉक्टर साहब कुर्सी पर ढीले पड़ गए. आंखें बंद हो गईं. लगभग दो दशक बाद आंखों के सामने आ गई फूल-सी खिली-खिली, ख़ूबसूरत सुमन. शांत स्वभाव की थी वो. अपनी बड़ी-बड़ी कजरारी आंखों को उनके मुख पर गड़ाकर तन्मय हो उनका लेक्चर सुनती. सिर झुका नोट्स लेती, जब भी उस पर नज़र पड़ती, उसकी एकाग्रता में कभी कोई कमी नहीं पाते. उन्होंने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया. हां, उसको शिष्य के रूप में पसंद अवश्य करते थे. नए-नए मेडिकल कॉलेज में लेक्चरार हुए थे. अपने ज्ञान को शिष्यों पर प्रदर्शित करने की प्रबल इच्छा थी, पर शायद सुमन इन सब से अलग और ज़्यादा पाने की आशा रखती थी. पर वो इन सबको समझ ही नहीं पाते. फिर भी मौन पुजारिन की तरह सुमन उनके साथ साये की तरह रहती. वो पढ़ाई पूरी कर उनके ही अंडर में काम कर रही थी. तब उसके मम्मी-पापा ही प्रस्ताव लेकर आए. ना ही कर देते, पर मित्रों ने ऐसे घेरा, ऐसी लताड़ लगाई कि उनको हां करना ही पड़ा.

“कहां है तुम्हारा पोता?”
“दस नंबर के बेड पर.”

दूसरे दिन से सुमन काम पर नहीं आई. कभी भी नहीं आई, किसी ने बताया कि कोई स्कॉलरशिप ले वो विदेश चली गई है. भूल ही गए थे उसको. असल में वो उनके मन की गहराई को इतना बड़ा समर्पण करके भी छू नहीं पाई थी. आज इतन
युवती ने सिर उठाया, आंचल से आंसू पोंछे, मन के आवेग से आंसू आ गए थे.
“मैं मालती हूं डॉक्टर बाबा.”
“ को आगे किया. उन्होंने डरते-डरते दोनों फूल बढ़ा दिए. मन में वसंत ऋतु की सुगंधित हवा बह चली, मानो उनका जीवन परिपूर्ण हो उठा. सिर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया उनको, “सच्चे इंसान बनो. सबके लिए जीयो.”
युवती ने काग़ज़ की प्लेट में दो सेब रख आगे कर दिया, “बाबा! हम ग़रीब आपके लिए भला क्या लाते? आपको याद नहीं होगा. इतने मरीज़ आते-जाते हैं. दो वर्ष पहले मेरे पति को जब सबने जवाब दे दिया था, तब आपने दिन-रात एक करके उनका जीवन लौटाया था.”
तभी याद आ गया, हां जीवित रहने की आशा एकदम नहीं थी. निमोनिया पूरी तरह बिगड़ चुका था. झोला छाप डॉक्टरों ने मौत के द्वार तक पहुंचा दिया था. उसको तो अस्पताल में ले भी नहीं रहे थे. जूनियर्स ने बार-बार कहा, “इसका आख़िरी समय आ गया है सर. क्यों बेकार में बदनामी अपने सिर
आंसू पोंछ वे लोग चले गए. वो फिर कुर्सी पर ढीले पड़ गए. मन ने कहा,
‘राजीव! तेरा हिसाब ग़लत है. तुम सबको हरा दिया है मैंने! मेरा जीवन सूना नहीं है. क्या है तुम लोगों के पास? अपना छोटा-सा परिवार. एक दिन चुपचाप संसार को छोड़ चले जाओगे तो पता भी नहीं चलेगा किसी को, पर मेरा परिवार इतना बड़ा है कि मैं ही अपने सदस्यों को पहचान नहीं पाता. बीमार पड़ा, तो ऐसे घेर लेते हैं मुझे कि मौत मेरे पास आने के लिए चार बार सोचकर हिम्मत जुटाएगी. नहीं राजीव, मैंने खोया कुछ भी नहीं, बल्कि इतना पाया है कि तुम सबको हरा दिया है

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