Doha, Rola and padh meaning.
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Explanation:
दोहा अर्द्धसम मात्रिक छंद है। यह दो पंक्ति का होता है इसमें चार
चरण माने जाते हैं | इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में
१३-१३ मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में ११-११
मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में प्राय: जगण (ISI) टालते
है, लेकिन इस की आवश्यकता नहीं है। 'बड़ा हुआ तो' पंक्ति का
आरम्भ ज-गण से ही होता है। सम चरणों के अंत में एक गुरु और
एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है अर्थात अन्त में लघु
होता है।
उदाहरण-
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागें अति दूर।।
मुरली वाले मोहना, मुरली नेक बजाय।
तेरी मुरली मन हरे, घर अँगना न सुहाय॥
हेमचन्द्र के मतानुसार दोहा-छन्द के लक्षण हैं - समे द्वादश ओजे
चतुर्दश दोहकः समपाद के अन्तिम स्थान पर स्थित लघु वर्ण को
हेमचन्द्र गुरु-वर्ण का मापन देता है. 'अत्र समपादान्ते
गुरुद्वयमित्याम्नाय:' यह सूत्र विषद किया है।
मम तावन्मतमेतदिह - किमपि यदस्ति तदस्तु रमणीभ्यो
रमणीयतरमन्यत् किमपि न अस्तु