dohe ka sar likhya.
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Explanation:
माला तोह मन में फिरता है और जीभ मुह में
इस्क सार है की माला मन में फेहरी जाती है हाथ से नही । ओर जीभ मुह में फिरती है । मगर अगर हमारा मन दसो दिशाओ मे फिरता है तोह माला करने या नाम बोलने का कोई फायदा नहीं है ।
Answer:
3. माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।
माला तो कर: हाथ
फिरै: घूमना
जीभि: जीभ
मुख: मुँह
माँहि: में
मनुवाँ: मन
दहुँ: दसों
दिसि: दिशा
तौ: तो
सुमिरन: स्मरण
प्रसंग – प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘वसंत-3’ से ली गई है। इस साखी के कवि “कबीरदास“ जी हैं। इसमें कबीर प्रभुनाम स्मरण पर बल दे रहें हैं।
व्याख्या – इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि माला को हाथ में लेकर मनुष्य मन को को घुमाता है जीभ मुख के अंदर घूमती रहती है। परन्तु मनुष्य का चंचल मन सभी दिशाओं में घूमता रहता है। मानव मन गतिशील होता है जो बिना विचारे इधर-उधर घूमता रहता है परन्तु ये भगवान् का नाम क्यों नहीं लेता।