Hindi, asked by student192, 4 months ago

dohe oa sar likhya. ​

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Answered by shubhshubhi2020
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माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।

मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।

शब्दार्थ -

कर: हाथ

फिरै: घूमना

जीभि: जीभ

मुख: मुँह

माँहि: में

मनुवाँ: मन

दहुँ: दसों

दिसि: दिशा

तौ: तो

सुमिरन: स्मरण

प्रसंग – प्रस्तुत साखी हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘वसंत-3’ से ली गई है। इस साखी के कवि “कबीरदास“ जी हैं। इसमें कबीर प्रभुनाम स्मरण पर बल दे रहें हैं।

व्याख्या – इसमें कबीरदास जी कहते हैं कि माला को हाथ में लेकर मनुष्य मन को को घुमाता है जीभ मुख के अंदर घूमती रहती है। परन्तु मनुष्य का चंचल मन सभी दिशाओं में घूमता रहता है। मानव मन गतिशील होता है जो बिना विचारे इधर-उधर घूमता रहता है परन्तु ये भगवान् का नाम क्यों नहीं लेता।

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