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भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है जिसका एक बहुत बड़ा भाग आज भी गाँवों में निवास करता है । ये लोग आज भी अपनी आजीविका के लिए पूर्ण रूप से कृषि पर निर्भर हैं । वास्तविक रूप में यदि देखा जाए तो भारत की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि ही है ।
गाँवों में लोग प्राय: सादा जीवन व्यतीत करते हैं । भारतीय ग्राम्य जीवन की जब भी बात होती है तो तपती हुई धूप में खेती करता हुआ किसान, दूर-दूर तक फैले हुए खेत और उन पर लहलहाती हरी – भरी फसल घर का काम-काज सँभालती हुई औरतें तथा हाट (बाजार) व मेले के दृश्य स्वत: ही मन-मस्तिष्क पर उभर आते हैं ।
प्रदूषण से दूर स्वच्छ, सुगंधित व ताजी हवा गाँव की और अनायास ही खींचती है । सभी ग्रामवासियों का मिल-जुल कर एक परिवार की भाँति रहना तथा एक-दूसरे को यथासंभव सहयोग करने हेतु सदैव तत्पर रहना हमारे ग्रामीण जीवन की विशेषता है।
ग्रामीण जीवन में मनोरंजन हेतु अनुपम व अनूठे साधन उपलब्ध हैं । लोग तरह-तरह से अपना व दूसरों का मनोरंजन करते हैं । प्राय: दिन में कार्य करने के पश्चात् सायंकाल को लोग चौपाल अथवा किसी प्रांगण आदि पर एकत्र होते हैं जहाँ वे तरह-तरह की बातों से अपना मन बहलाते हैं ।
कुछ लोग धार्मिक कथाओं जैसे श्रीराम अथवा श्रीकृष्ण आदि के जीवन-चरित्र पर चर्चा करते हैं । प्राय: लोग मंडली बनाकर ढोल मजीरे आदि वाद्य यंत्रों के साथ बैठकर संगीत व नृत्य का आनंद उठाते हैं । गायन में लोकगीत व भजन आदि प्राय: सुनने को मिलते हैं l
विभिन्न त्योहारों का पूर्ण आनंद व उल्लास ग्राम्य जीवन में भरपूर देखने को मिलता है । दशहरा, दीवाली तथा होली आदि त्योहार ग्रामवासी परस्पर मिल-जुल कर व बड़े ही पारंपरिक ढंग से मनाते हैं । ग्रामीण मेले का दृश्य तो अपने आप में अनूठा होता है । भारतीय संस्कृति का मूल रूप इन्हीं मेलों व गाँव के जीवन में पूर्ण रूप से देखा जा सकता है ।
ग्रामवासी प्राय: सीधे व सरल स्वभाव के होते हैं । उनमें छल-कपट व परस्पर द्वेष का भाव बहुत कम देखने को मिलता है । उनमें धार्मिक आस्था बहुत प्रबल होती है। बड़ों की आज्ञा मानना व उन्हें सम्मान देना यहाँ की संस्कृति में है ।
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भारत एक विशाल जनसंख्या वाला देश है जिसका एक बहुत बड़ा भाग आज भी गाँवों में निवास करता है । ये लोग आज भी अपनी आजीविका के लिए पूर्ण रूप से कृषि पर निर्भर हैं । वास्तविक रूप में यदि देखा जाए तो भारत की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार कृषि ही है ।
गाँवों में लोग प्राय: सादा जीवन व्यतीत करते हैं । भारतीय ग्राम्य जीवन की जब भी बात होती है तो तपती हुई धूप में खेती करता हुआ किसान, दूर-दूर तक फैले हुए खेत और उन पर लहलहाती हरी – भरी फसल घर का काम-काज सँभालती हुई औरतें तथा हाट (बाजार) व मेले के दृश्य स्वत: ही मन-मस्तिष्क पर उभर आते हैं ।
प्रदूषण से दूर स्वच्छ, सुगंधित व ताजी हवा गाँव की और अनायास ही खींचती है । सभी ग्रामवासियों का मिल-जुल कर एक परिवार की भाँति रहना तथा एक-दूसरे को यथासंभव सहयोग करने हेतु सदैव तत्पर रहना हमारे ग्रामीण जीवन की विशेषता है।
ग्रामीण जीवन में मनोरंजन हेतु अनुपम व अनूठे साधन उपलब्ध हैं । लोग तरह-तरह से अपना व दूसरों का मनोरंजन करते हैं । प्राय: दिन में कार्य करने के पश्चात् सायंकाल को लोग चौपाल अथवा किसी प्रांगण आदि पर एकत्र होते हैं जहाँ वे तरह-तरह की बातों से अपना मन बहलाते हैं ।
कुछ लोग धार्मिक कथाओं जैसे श्रीराम अथवा श्रीकृष्ण आदि के जीवन-चरित्र पर चर्चा करते हैं । प्राय: लोग मंडली बनाकर ढोल मजीरे आदि वाद्य यंत्रों के साथ बैठकर संगीत व नृत्य का आनंद उठाते हैं । गायन में लोकगीत व भजन आदि प्राय: सुनने को मिलते हैं ।
विभिन्न त्योहारों का पूर्ण आनंद व उल्लास ग्राम्य जीवन में भरपूर देखने को मिलता है । दशहरा, दीवाली तथा होली आदि त्योहार ग्रामवासी परस्पर मिल-जुल कर व बड़े ही पारंपरिक ढंग से मनाते हैं । ग्रामीण मेले का दृश्य तो अपने आप में अनूठा होता है । भारतीय संस्कृति का मूल रूप इन्हीं मेलों व गाँव के जीवन में पूर्ण रूप से देखा जा सकता है ।
ग्रामवासी प्राय: सीधे व सरल स्वभाव के होते हैं । उनमें छल-कपट व परस्पर द्वेष का भाव बहुत कम देखने को मिलता है । उनमें धार्मिक आस्था बहुत प्रबल होती है। बड़ों की आज्ञा मानना व उन्हें सम्मान देना यहाँ की संस्कृति में है ।