doo bahut hi important Kahani vah Bhi Is kahavat per mehnat ka fal Hamesha mithaa Hota Hai
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सूर्यनगर में एक लड़का रहता था विपिन। वह छठी कक्षा में पढ़ता था। विपिन होशियार था, लेकिन पढ़ाई में उसका मन कम ही लगता था। दोस्तों के साथ खेलने-कूदने और मस्ती करने में उसे खूब मजा आता था। नटखट विपिन कभी पार्क में घूमते कुत्तों को अपनी चित्रकारी का नमूना बना देता, तो कभी अजीबोगरीब आवाजें निकालकर दोस्तों को हैरान कर देता। एक बार पीछे से बूढ़े अंकल जी की आवाज निकालकर उसने पार्क में खेल रहे बच्चों को डरा दिया था। अक्सर वह पड़ोस के घरों की घंटियां बजाकर घर में दुबक जाता और पड़ोसी सोचते रह जाते कि ये किसकी शरारत है। वहीं घर में खेलते हुए वह पूरा सामान इधर से उधर कर देता।
मम्मी जब बुलातीं, तो बड़ी मासूमियत से जवाब देता, ‘आता हूं मम्मी’ और फिर अपनी उछलकूद में लग जाता। अक्सर घर में खेलते हुए बैट के उसके तेज शॉट से बल्ब और ट्यूबलाइट चकनाचूर हो जातीं। जब इस बात के लिए पापा उसे डांटते, तो वह कुछ समय के लिए शांत रहता और अगले दिन, फिर वही धमाचौकड़ी चालू हो जाती। वैसे विपिन को पापा के साथ बैडमिंटन खेलने में भी खूब मजा आता। खासतौर पर जब पापा के साथ कैरम बोर्ड का खेल खेलते हुए वह क्वीन जीत जाता, तो खुशी से झूम उठता। मम्मी के साथ उसका रूठना-मनाना चलता रहता। जब मम्मी सब्जी और राशन का सामान लेने जातीं, तो वह भी उनके साथ चलने की जिद करता। इसी बहाने उसकी चॉकलेट और आइसक्रीम की फरमाइश भी पूरी हो जाती। परचून की दुकान पर जब खरीदे हुए सामान की लिस्ट बन रही होती, तब विपिन अक्सर दुकानदार से पहले ही हिसाब जोड़कर बता देता ‘पूरे 320 रुपये’। मां हैरान रह जातीं। कहतीं ‘जब मैं इसे गणित का होमवर्क करने के लिए कहती हूं तो यह हमेशा कोई न कोई बहाना लगाता रहता है और यहां देखो, तो सामान का हिसाब इतनी जल्दी जोड़ दिया। विपिन लाड़-प्यार में पला था और उसके मम्मी-पापा पढ़ाई के लिए उसे हर बात प्यार से ही समझाते थे। हालांकि विपिन भी मम्मी-पापा से बहुत प्यार करता था, लेकिन फिर भी वह उनकी चिंताओं को नहीं समझ पाता था। दरअसल जब भी विपिन पढ़ने बैठता, तो एक उलझन में फंस जाता। साइंस तो उसे रोचक लगती, लेकिन अन्य विषय में उसका मन न लगता। गणित में एलजेब्रा के सवाल उसकी समझ में न आते, तो हिंदी-अंग्रेजी का व्याकरण भी उसके सिर के ऊपर से चला जाता। दरअसल विपिन गणित का अभ्यास नहीं करता था और हिंदी-अंग्रेजी के विषयों की अपनी परेशानी के बारे में मम्मी-पापा को भी नहीं बताता था। लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीत रहा था, विपिन के मन में भी पढ़ाई को लेकर डर बढ़ता जा रहा था। अब पढ़ाई उसे पहले से ज्यादा मुश्किल लगने लगी थी। वक्त तेजी से बीत रहा था। अब छठी कक्षा के इम्तिहान में सिर्फ छह महीने रह गए थे।