Hindi, asked by lakshitalry182336, 30 days ago

dosti par shlok in sanskrit​

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Answered by shreyaa14
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Answer:

कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:। अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ॥ ...

जानीयात्प्रेषणेभृत्यान् बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे। मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये ॥ ...

ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः सः पिता यस्तु पोषकः।

Answered by Anshika2244
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Explanation:

जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं !

मानोन्नतिं दिशति पापमपा करोति !!

अच्छे मित्रों का साथ बुद्धि की जटिलता को हर लेता है, हमारी बोली सच बोलने लगती है, इससे मान और उन्नति बढती है और पाप मिट जाते है|

चन्दनं शीतलं लोके,चन्दनादपि चन्द्रमाः !

चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगतिः !!

इस दुनिया में चन्दन को सबसे अधिक शीतल माना जाता है पर चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होती है लेकिन एक अच्छे मित्र चन्द्रमा और चन्दन दोनों से शीतल होते है|

वनानी दहतो वन्हे: सखा भवति मारुतः!

स एव दीपनाशाय कृशे कस्यास्ति सौहृदम !!

जब जंगल में आग लग जाती है तो हवा उसका मित्र बन जाता है, और आग को फ़ैलाने में उसकी मदद करता है, लेकिन वही हवा एक छोटी से चिंगारी को पलक झपकते हुए बुझा देती है। इसलिए कमजोर व्यक्ति का कोई मित्र नहीं होता है।

कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:।

अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ॥

न कोई किसी का मित्र है और न ही शत्रु, कार्यवश ही लोग मित्र और शत्रु बनते हैं ।

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