dukh ka adhikar paath ka mool bhav.
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‘दुःख का अधिकार’ कहानी ‘यशपाल’ द्वारा रचित कहानी सर्वश्रेष्ठ कहानियों में से एक है।
इस कहानी में लेखक किसी के दुख के प्रति संवेदना व्यक्त करने के लिये लोगों की उस मनोवृत्ति का चित्रण जिसमें वो किसी की सामाजिक हैसियत के अनुसार किसी के दुख के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं।
इस पाठ अर्थात कहानी का मूल भाव ये है कि इसमें लेखक ने बताया है कि दुख करने के भी अधिकार होते हैं।
कहानी में एक गरीब बुढ़िया है जिसका जवान बेटा दो दिन पूर्व मर गया है और उसकी बहू व बच्चे भूख से तड़प रहे हैं। वो बूढ़ी औरत चाह कर अपने जवान पुत्र का शोक मनाने के लिये घर में नही रुक सकती क्योंकि उसके पोते-पोतियां भूख से बिलख रहें हैं घर में खाने के लिये कुछ नही है इसलिये उसे उनके लिये खाने का इंतजाम करना है। वह बाजार में कुछ खरबूजे बेचने आई ताकि कुछ पैसे कमा सके। पर यहां पर लोग उसकी निंदा करने लगते हैं कि लड़के को मरे अभी दो दिन नही हुये और ये अपनी दुकान सजाकर बैठ गयी। किसी को भी उस बूढ़ी स्त्री की तकलीफ की नही पड़ी थी कि किस विवशता में वो खरबूजे बेचने के लिये आई है।
लेखक को ये देखकर अपने पड़ोस में हुई एक अमीर सांभ्रान्त परिवार के जवान व्यक्ति की मृत्यु की याद आ जाती है कि कैसे उस व्यक्ति की माँ के पुत्र-शोक में पूरा शहर ही शोक-ग्रस्त हो गया था क्योंकि वो अभिजात्य वर्ग के थे पूरा शहर उनके दुख में शामिल था।
पर वो गरीब बुढ़िया जिसके घर में खाने के लिये कुछ भी नही है बच्चे भूख से बिलख रहे हैं मजबूरी में काम कर रही है ताकि कुछ पैसे कमा सके तो भी लोगों को उसके दुख से कोई सरोकार नही। उल्टे वो उसकी निंदा करने में लगें हैं क्योंकि वो गरीब है।