Durga saptashati ratri suktam stotram sanskrit mein
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{योगनिद्रास्तुति:}
ऊँ विश्वेश्वरीं जगद्धात्रीं स्थितिसंहारकारिणीम्।
निद्रां भगवतीं विष्णोरतुलां तेजस: प्रभु:।।1।।
त्वं स्वाहा त्वं स्वधा त्वं हि वषट्कार: स्वरात्मिका।
सुधा त्वमक्षरे नित्ये त्रिधा मात्रात्मिका स्थिता।।2।।
अर्धमात्रास्थिता नित्या यानुच्चार्या विशेषत:।
त्वमेव सन्ध्या सावित्री त्वं देवि जननी परा।।3।।
त्वयैतद्धार्यते विश्वं त्वयैतत्सृज्यते जगत्।
त्वयैतत्पाल्यते देवि त्वमत्स्यन्ते च सर्वदा।।4।।
विसृष्टौ सृष्टिरूपा त्वं स्थितिरूपा च पालने।
तथा संहृतिरुपान्ते जगतोsस्य जगन्मये।।5।।
महाविद्या महामाया महामेधा महास्मृति:।
महामोहा च भवती महादेवी महासुरी।।6।।
प्रकृतिस्त्वं च सर्वस्य गुणत्रयविभाविनी।
कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च दारुणा।।7।।
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