Hindi, asked by himanshu65818, 7 months ago

Durjan vah Sajjan vyakti Apne kis visheshta ke Karan Din kahlate Hain​

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Answered by avinash9631
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Answer:

Atmanirbhar........................................

Answered by prathamesh352
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Answer:

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

संस्कृत में कहावत है कि दुर्जन दूसरों के राई के समान मामूली दोषों को पहाड़ के समान बड़ा बनाकर देखता है और अपने पहाड़ के समान बड़े पापों को देखते हुए भी नहीं देखता। सज्जन या महात्मा ठीक इसके विपरीत होते हैं। उनका ध्यान दूसरों के बजाय केवल अपने दोषों पर जाता है। अधिकांश व्यक्तियों में कोई न कोई बुराई अवश्य होती है। कोई भी बुराई न होने पर व्यक्ति देवता की कोठी में आ जाता है। मनुष्य को अपनी बुराइयों को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए न कि दूसरों की कमियों को लेकर छींटाकशी करने या टीका टिप्पणी करने का। अपने मन की परख मन को पवित्र करने का सबसे उत्तम साधन है। आत्म निरीक्षण आत्मा की उन्नति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। महात्मा कबीर ने कहा है कि जब मैंने मन की पड़ताल की तो मुझे अपने जैसा बुरा कोई न मिला। महात्मा गांधी ने कई बार स्पष्ट रूप से कहा था कि मैंने जीवन में हिमालय जैसी बड़ी भूल की है। अपनी भूलों को ध्यान देना या उन्हें स्वीकार करना आत्मबल का चिन्ह है। जो लोग दूसरों के सामने अपनी भूल नहीं मानते और न ही अपने को दोषी स्वीकार करते हैं वह सबसे बड़ा कायर हैं। जिसका अंतकरण शीशे के समान उजला है उसे झट अपनी भूल महसूस हो जाती है। मन तो दर्पण है। मन में पाप है तो जग में पाप दिखाई देता है। पवित्र आचरण वाले अपने मन को देखते हैं तो उन्हें लगता है कि अभी इस में कोई कमी रह गई है। इसलिए वे अपने को बुरा कहते हैं। यही उनकी नम्रता आवाज साधना है।

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