dwadash jyotriling short stories
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बारह ज्योर्तिलिंगों में से एक हैं बाबा केदरनाथ। इनका यह नाम सतयुग के समय पड़ा और तब से आज तक उत्तराखंड की पवित्र भूमि पर भगवान शिव केदारनाथ नाम से हिमालय की ऊंची चोटी पर विराजमान हैं।
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार सतयुग में भगवान विष्णु ने नर और नारायण के रूप में अवतार लिया। अलकनंदा नदी के दोनों किनारों पर मौजूद नर और नारायण पर्वत पर इन्होंने घोर तपस्या की। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए। विष्णु के अवतार होने के कारण इन्हें किसी सांसारिक फल की चाहत नहीं थी।
इसलिए जब भगवान शिव ने कहा कि वर मांगो, तब नर और नारायण ने कहा कि आप इस क्षेत्र में निवास करें। जो भी भक्त यहां आएं उसे जीवन मरण के चक्र से मुक्ति प्रदान करें।
नर और नारायण की प्रार्थना पर भगवान शिव ने कहा कि यहां ज्योर्तिलिंग प्रकट होगा जो साक्षात शिव रूप होगा। इसके दर्शन करने से शिव दर्शन करने का पुण्य प्राप्त होगा।
नर और नारायण की प्रार्थना पर ज्योर्तिलिंग प्रकट हुआ। जहां पर शिव का ज्योर्तिलिंग प्रकट हुआ वहां केदार नामक धर्मप्रिय राजा का शासन था। राजा केदार के नाम पर यह क्षेत्र केदारखंड कहलाता था।
राजा केदार भगवान शिव के भक्त थे। राजा केदार और केदारखंड के रक्षक के रूप में भगवान शिव का ज्योर्तिलिंग प्रकट होने के कारण भगवान शिव केदारनाथ कहलाये।
Explanation:
दक्षिण के कैलाश नाम से विख्यात श्री शैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थित है। कहते हैं यहां शिव की पूजा करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है।
इस शिवलिंग के विषय में कथा है कि ब्रह्माण्ड की प्ररिक्रमा में गणेश जी को विजयी बनाए जाने के बाद कुमार कार्तिकेय रुठ कर दक्षिण में कौंच पर्वत पर आकर रहने लगे।
यहां कुमार कार्तिकेय को मनाने के लिए शिव पार्वती पधारे। इसके प्रतीक रुप में ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ जो मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कहलाया।
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