eassay on पराली in hindi
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पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण का असर बच्चों की सेहत पर पड़ रहा है। पंजाब के मालवा क्षेत्र में स्थित पटियाला, संगरूर और फतेहगढ़ साहिब जिलों के ग्रामीण इलाकों में किए गए भारतीय वैज्ञानिकों के ताजा अध्ययन में यह बात उभरकर आयी है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, पराली जलाने की अवधि में पीएम-10, पीएम-2.5 और पीएम-1 का औसत मासिक स्तर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित मापदंडों के मुकाबले 3-4 गुना अधिक पाया गया है। इसके अलावा हवा में हानिकारक सूक्ष्म कणों के बढ़े हुए घनत्व की अवधि के दौरान बच्चों में फोर्स्ड वाइटल कैपेसिटी (एफवीसी) और फोर्स्ड एक्सपायरेटरी वॉल्यूम (एफईवी) जैसे मापदंडों में गिरावट दर्ज की गई है, जो फेफड़ों की बेहतर कार्यप्रणाली के संकेतक माने जाते हैं। लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में एफवीसी की गिरावट का स्तर अधिक पाया गया है।
दिसंबर-2014 से सितंबर-2015 के बीच गेहूँ के एक फसल सत्र और दो धान फसल सत्रों के दौरान यह अध्ययन किया गया है, जिसमें सूक्ष्म कणों पीएम-10, पीएम-2.5 और पीएम-1 के कारण बच्चों की सेहत पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन किया गया है। पराली जलाने की अवधि में किए गए इस अध्ययन में 10-16 वर्ष के बच्चों की फेफड़ों की कार्यप्रणाली की पड़ताल एफवीसी और एफईवी से की गई है, जिनका उपयोग फेफड़ों की कार्यप्रणाली के परीक्षण के लिये किया जाता है।
Answer:
पराली न जलाने के प्रति लगातार जागरूक करने से किसानों पर काफी प्रभाव दिखाई दिया है। अब ज्यादातर किसान जिले में पराली को चारे के रूप में काट कर पशुओं को चरा देते हैं। अब कटी हुई पराली की कुट्टी काटकर भी बेचते हैं। इससे किसानों को आर्थिक लाभ होता है। फिर भी कुछ किसान कई बार रात को पराली को जलाते हैं, जिसकी वजह से शहर के ऊपर धुआं की परत जम जाती और प्रदूषण बढ़ जाने से लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है।
धान की कटाई के काम शुरू होने के साथ ही किसान गेहूं की बुवाई के लिए खेतों को तैयार करने में जुटने लगे हैँ। जमीन गीली होने की वजह से धान को कम से कम एक फुट ऊपर से काटते हैं। धान पराली को यदि खेत में छोड़ देते हैं तो गेहूं निकलने में परेशानी होती है। इसलिए किसान पराली को जला देते हैं या फिर कुट्टी काट कर पशुओं के चारे के लिए बेच देते हैं। पराली जलाने से खेत पूरी तरह से साफ हो जाता है और किसान पलेवा करके सीधे खेतों की बुवाई कर देते हैं। पराली जलाने से पूरे शहर के चारों तरफ आसमान में धुआं की परत जमा हो जाती है। इस धुआं से लोगों की आंखों में जलन हो जाती है। दमा, सांस, और हृदय के मरीजों को सांस लेने में खासी परेशानी होती है। कई बार तो ऐसे मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ जाता है। पराली जलाने से भूमि की उर्वरा कमजोर होती है। कृषि मित्र कीट केंचुआ आदि जलकर मर जाते हैं। कृषि विभाग हर वर्ष पराली को जलाने के बारे में किसानों को सम्मेलनों और पंपलेट आदि बांट कर जागरूक करने में जुटा है। विभाग के इन कार्यों किसानों पर कम असर दिखाई देता है।
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पराली न जलाएं, इसके लिए किसानों को जागरूक करने के लिए कृषि विभाग की तरफ से बल्लभगढ़ और फरीदाबाद खंड से 20-20 गांवों का चयन किया गया है। इन गांवों में स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के माध्यम से पंपलेट बांटे जाएंगे। विभाग की तरफ से एक मोबाइल वैन चलाई गई है। ये मोबाइल वैन हर गांव में जा रही है। इस में कृषि विभाग के अधिकारी बैठें होंगे और लाउडस्पीकर से किसानों को पराली न जलाने के बारे में बताया जा रहा है। गांवों में लगाए जा रहे प्रशासन के रात्रि प्रवास शिविरों के माध्यम से किसानों को पराली न जलाने के प्रति जागरूक किया जा रहा है। कृषि विभाग का इस पर पूरा फोकस है कि पराली न जलाई जाए।
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