Hindi, asked by arfa57, 4 months ago

eassy about environment in hindi​

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Answered by Anonymous
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Answered by nitinsisodia047
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हम सब पर्यावरण के विषय में जानते हैं कि जो भी प्राकृतिक संसाधन इस धरती पर उपलब्ध हैं वे पर्यावरण का ही हिस्सा हैं और सब मिलकर पृथ्वी पर पर्यावरण का निर्माण करते हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों में धरती, वायु, जल, सूर्य का प्रकाश, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी आते हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों की उपस्थिति से ही धरती पर जीवन संभव है। प्रकृति ने हमें यह पर्यावरण रूपी अमूल्य भेंट प्रदान की है। इस पर्यावरण से ही हमारी जरूरत का सारा सामान उपलब्ध भी होता है। हमें जीवन जीने के लिए जो भी आवश्यक वस्तु चाहिये वह इस पर्यावरण से हमें उपलब्ध होती है। जैसे सांस लेने के लिए हवा (ऑक्सीजन), खाने के लिए अनाज, फल-फूल, सब्जी एवं पीने के लिए पानी। इनमें से किसी एक भी तत्व के बिना मनुष्य एवं जानवरों का जीवित रहना असंभव है। पूरी सृष्टि में मात्र पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जहां पर संतुलित पर्यावरण उपलब्ध है जिसके कारण इस ग्रह पर ही जीवन संभव है।

प्रकृति द्वारा प्रदान की गई इस अमूल्य सौगात को मनुष्य संभाल नहीं पा रहा है। वह अपने स्वार्थ के लिए इसका अंधाधुंध दोहन कर रहा है और साथ ही इसे दूषित भी कर रहा है। इन सबके कारण धीरे-धीरे धरती पर पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है और धरती पर कई नई बीमारियों एवं आपदाओं का जन्म हो रहा है। मनुष्य की लापरवाही आगे आने वाली पीढ़ी के लिए धरती को रहने लायक ग्रह न बनाने पर मजबूर कर रही है। पर्यावरण के संतुलन में गड़बड़ी के कारण ही अस्वाभाविक मौसम परिवर्तन जैसे किसी वर्ष बहुत अधिक वर्षा तो किसी वर्ष बिलकुल सूखे की स्थिति, बहुत अधिक ठंड तो कभी बहुत अधिक गर्मी, भूकम्प जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस मौसम परिवर्तन का पूरे पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है जैसे कभी तो फसल ठीक हो जाती है पर कभी सारी बर्बाद, हर मौसम में नई-नई बीमारियाँ जन्म लेती हैं। खेती में रसायनों के अत्यधिक उपयोग के कारण मिट्टी के पोषक तत्व तो समाप्त हो ही रहे हैं, साथ ही साथ इनसे उगने वाली फसलों का खाकर इंसान बीमारियों का पुतला बनता जा रहा है। इससे पहले कि विज्ञान नई बीमारी का समाधान निकाले कोई दूसरी बीमारी ही जन्म ले लेती है। मनुष्य के स्वार्थ के चलते वायु, भूमि, जल सभी प्रदूषित होते जा रहे हैं और ऐसे पर्यावरण में स्वस्थ रहना तो मुश्किल बल्कि साँस लेना भी मुश्किल होता जा रहा है।

अंग्रेजी भाषा का शब्द “Environment” फ्रेंच शब्द ‘Environ’ से बना है । Environ का आशय आस – पास के आवरण से है । हिन्दी में Environment को पर्यावरण कहते है। ‘पर्यावरण’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। परि + आवरण = पर्यावरण। अर्थात् चारों ओर विद्यमान आवरण। पर्यावरण का अर्थ उन सभी प्राकृतिक दशाओं एवं वस्तुओं से लिया जाता है जो हमारे चरों ओर व्याप्त हैं। ये वस्तुएँ हैं – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति व जीव – जन्तु।

इन सब प्राकृतिक पदार्थों का प्रभाव मानव के भोजन, वस्त्र, मकान, पेय जल तथा व्यवसायों आदि पर पड़ता है। यही नहीं, शास्त्रों व स्वास्थ्य-विज्ञान के अनुसार, मानव के शरीर की रचना भी इन्हीं पाँच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व वनस्पति) से मिलकर हुई है। इन पाँच प्राकृतिक तत्वों के बल पर ही हम जीते हैं और जब हम मरते हैं तो हमारा यह शरीर भी इन्हीं पाँचों तत्वों में विलीन हो जाता है। क्योंकि मरने पर यदि यह शरीर कब्र में दफन होता है तो पृथ्वी से मिल जाता है और दाह-संस्कार होने पर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व वनस्पति तत्वों में विलीन हो जाता है।

पर्यावरण के इन तत्वों के कारण अथवा सन्तुलित पर्यावरण के कारण ही पृथ्वी एक जीवित ग्रह है और पर्यावरण के इन तत्वों के अभाव में अथवा असन्तुलन के कारण ही चन्द्रमा पर जीवन नहीं है।

जिस पृथ्वी पर हम निवास करते हैं, सम्पूर्ण सौर जगत में उसे ही यह सौभाग्य प्राप्त है कि पर्यावरण के सभी तत्वों की विद्यमानता के कारण यहाँ जीवन है, अन्यथा सौर जगत में अन्य ग्रहों पर जीवन के प्रमाण अभी तक उपलब्ध नहीं हैं। पर्यावरण के ये सभी तत्व एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं और विकसित होते रहते हैं। सभी जीव जन्तु भी इसी “पर्यावरण” के अंग हैं और मानव तो इस पर्यावरण की सर्वश्रेष्ठ रचना है।

हम जीते हैं तो इन्हीं पाँच तत्वों (प्राकृतिक पदार्थों) से हमारा पोषण होता है और हमारी सारी आवश्यकताएँ भी इन्हीं के माध्यम से पूरी होती हैं। स्पष्ट है कि पर्यावरण के इन प्राकृतिक अंगो का मानव के जीवन में भारी महत्व है।

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