eassy on Bharat ke badalte mousam
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खतरे का संकेत है बदलता मौसम
भारत में ग्लोबल वार्मिंग का असर अब साफ नजर आने लगा है. पिछले दिनों बेमौसम बरसात और बर्फबारी के अलावा भारी बीमारियां भी सामने आई हैं जिसने मौसम विज्ञानियों को भी चिंता में डाल दिया है.
इस साल मार्च के दूसरे सप्ताह में भी उत्तरी और मध्य भारत में मौसम का मिजाज तमाम पूर्वानुमानों को झुठलाते हुए नई राह पर चल रहा है. इससे कहीं बेमौसम बरसात हो रही है तो कहीं भारी बर्फबारी. बदलते मौसम ने देश में कई मौसमी बीमारियों को भी बड़े पैमाने पर न्योता दे दिया है. उसके इस मिजाज ने मौसम विज्ञानियों को भी चिंता में डाल दिया है. इस सदी में यह पहला मौका है जब किसी साल मौसम के मिजाज में इतना ज्यादा बदलाव देखने को मिल रहा है.
मार्च के दूसरे सप्ताह में खासकर होली के बाद देश में आमतौर पर मौसम का मिजाज खुशनुमा हो जाता था. लेकिन इस साल अब भी उत्तर के पहाड़ी राज्यों में भारी बारिश और बर्फबारी का नजारा देखने को मिल रहा है. इसी तरह उत्तर-मध्य के कई राज्यों में अब भी जाड़े की ठिठुरन जारी है. मौसम विज्ञानियों का कहना है कि लंबे समय बाद पर्वतीय इलाकों में मार्च के महीने में बारिश और बर्फबारी का यह पहला मौका है. विशेषज्ञों के मुताबिक, मैदानी इलाकों में डेढ़ से दो दशकों में कभी-कभार ही मौसम के मिजाज में ऐसा बदलाव नजर आता है. मार्च के महीने में पर्वतीय इलाकों में भारी बर्फबारी की घटना तो एक सदी में एकाध बार ही देखने को मिलती है. इन दिनों अधिकतम तापमान में भी चार से छह डिग्री सेंटीग्रेड तक की गिरावट देखने को मिल रही है. यह गिरावट देश के कई राज्यों में दर्ज की गई है.
वरिष्ठ मौसम विज्ञानी जे.के.दस्तीदार कहते हैं, भारत ही नहीं, ग्लोबल वार्मिंग का असर अब दुनिया के कई देशों में स्पष्ट नजर आने लगा है. भारत में इसके इतने गहरे असर का यह पहला मौका है. उनके मुताबिक, इसी वजह से पिछले एक दशक में भारी बर्फबारी, सूखा, बाढ़, गरमी के मौसम में ठंड जैसी घटनाएं बढ़ी हैं. मौसम विज्ञानियों का कहना है कि मार्च में दिल्ली या अन्य मैदानी इलाकों में तेज बारिश लगभग 15 साल पहले हुई थी. जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों में तो ऐसी बर्फबारी असामान्य है. ऐसा भी नहीं है कि एकाध बार किसी निम्न दबाव के चलते ऐसा हुआ. मौसम के मिजाज में यह बदलाव इस साल बार-बार देखने को मिल रहा है.
वैसे, विशेषज्ञों के मुताबिक राहत की बात यह है कि अत्याधुनिक तकनीकों की वजह से ऐसी मौसमी घटनाओं का सही पूर्वानुमान लगाना काफी हद तक संभव हो रहा है. इससे जान-माल के नुकसान को कम करना संभव हो सका है. लेकिन मौसम के चक्र में होने वाले इस बदलाव पर अंकुश लगाने में विज्ञान के भी हाथ बंधे हैं.
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