Hindi, asked by chowdharymanis, 1 year ago

eassy on paryavaran pradusar

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Answered by babymalik1999p9830u
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प्रदूषण शब्द का अर्थ होता है चीजो को गन्दा करना. वर्तमान में हम खतरनाक रूप से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से घिरे हुए हैं. और यह समस्या भविष्य में हमारे लिये जानलेवा भी हो सकती है. इस भयंकर सामाजिक समस्या का मुख्य कारण हैं औद्योगीकरण वनों की कटाई और शहरीकरण प्राकृतिक संसाधन को गन्दा करने वाले उत्पाद जो की सामान्य जीवन की दैनिक जरूरतों के रूप इस्तेमाल की जाती है. रास्तो पर गाडियों का ज्यादा उपयोग होने से पेट्रोल और डीजल का भी ज्यादा से ज्यादा अपव्यय होगा और गाडियों से निकलने वाले धुए से वायु प्रदुषण होता है
Answered by dikshanishika
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मनुष्य की प्रगति का रहस्य प्रकृति के वे रहस्य थे, जिन्हें जानने के लिए मानव व्याकुल रहा, प्रकृति ने मानव को अनेक साधन दिए, जिनसे उसका जीवन सुखद बना रहे। लेकिन उसके रहस्यों से पर्दा उठाकर मानव ने प्रकृति का शोषण आरंभ कर दिया। प्रकृति का यह शोषण आज मानव जीवन के अस्तित्व को ही संकट में डाल रहा है, अपितु पृथ्वी पर समस्त जीवधारियों के अस्तित्व के लिए ही खतरा उत्पन्न कर रहा है। मनुष्य ने जब प्रकृति के साधनों यथा वायु की प्राकृतिक रचना को ही बदल दिया, तब वही वायु उसकी जीवनदायिनी बनने की अपेक्षा जीवन घाती बनने लगी।


वायु, जल, मिट्टी, पौधे, वृक्ष और पशु, पर्यावरण की रचना करते हैं और पारस्परिक संतुलन बनाए रखने के लिए दूसरे को प्रभावित करते हैं। यह प्रतिक्रिया परिस्थिति विज्ञान संबंधी संतुलन कहलाता है। कभी-कभी कुछ कारणवश पर्यावरण में परिवर्तन आ जाता है। यदि इस परिवर्तन की प्रक्रिया का प्रकृति के साथ सामंजस्य न किया जाए और परिस्थिति विज्ञान संबंधी संतुलन की प्राकृतिक स्थिति उसी रूप में न रखी जाए तो उससे असंतुलन पैदा हो जाता है, जिससे मानव जीवन खतरे में पड़ जाता है। यह असंतुलन ही प्रदूषण कहलाता है।

प्रदूषण के कारण और इससे उत्पन्न हानियाँ

प्रदूषण की समस्या का जन्म आधुनिक युग में ही हुआ है। वैज्ञानिक उन्नति के कारण उद्योग धंधों का विकास हुआ, जिसके लिए अनेक कल-कारखाने स्थापित हुए, रासायनिक पदार्थों का निर्माण होने लगा। अनेक घातक अस्त्र-शस्त्र बनने लगे। इन सबसे उत्पन्न पदार्थ वायु और जल में मिलकर उनकी प्राकृतिक रचना को असंतुलित करते हैं और तब ये उपयोगी नहीं रहते हैं। यदि इन्हें इस अवस्था में प्रयोग किया जाए तो ये शरीर के लिए विषैले सिद्ध होते हैं। वायु प्रदूषण (Air Pollution) के कारण वायु में ऑक्सीजन की मात्रा घटती है तथा कार्बन डाइ-ऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है।


विगत एक शताब्दी से वायुमंडल में कार्बन डाइ-ऑक्साइड की मात्रा में 16 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। यदि इसकी मात्रा इसी तरह बढ़ती रही तो एक दिन प्राण-वायु का अनुपात घट जाएगा और नगरों में रहने वाले लोग श्वास रोग और नेत्र रक्तिमता के शिकार हो जाएँगे। इससे हिमखंड पिघल जाएँगे और सागर में जल की मात्रा बढ़ती जाएगी। हमारे घरों में जो ईंधन जलाया जाता है, उससे कुछ गैसें प्राप्त होती हैं, जिनसे नाइट्रोजन प्रमुख है, जो कि ऑक्सीजन से संयोग करके नाइट्रोजन या ऑक्साइड बनाती है। इससे खाँसी व फेफड़े संबंधी रोग हो जाते हैं। यह ऑक्साइड जल के साथ अम्लीय स्थिति पैदा करते हैं।

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