Hindi, asked by Rossom7alla, 1 year ago

Eassy on ​​S.R rangnathan in hindi (500 words)

Answers

Answered by Abhishekh1
1
यस आर रंगनाथन भारत के पुस्तकालय जगत के जनक जिन्होने कोलन वर्गीकरण तथा क्लासिफाइड केटलाग कोड बनाया। पुस्तकालय विज्ञान को महत्व प्रदान करने तथा भारत मे इसका प्रचार प्रसार करने मे इनका सक्रिय योगदान था।[1]

प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा संपादित करें

रंगनाथन का जन्म 12 अगस्त 1892 को शियाली, मद्रास वर्तमान चेन्नई मे हुआ था। रंगनाथ की शिक्षा शियाली के हिन्दू हाई स्कूल, मद्रास क्रिश्चयन कॉलेज मे (जहां उन्होने 1913 और 1916 मे गणित में बी ए और एम ए की उपाधि प्राप्त की) और टीचर्स कॉलेज, सईदापेट्ट में हुयी। 1917 में वे गोवर्नमेंट कॉलेज, मंगलोर में नियुक्त किए गए। बाद में उन्होने 1920 में गोवर्नमेंट कॉलेज, कोयंबटूर और 1921-23 के दौरान प्रेजिडेंसी कॉलेज, मद्रास विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया। 1924 में उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय का पहला पुस्तकालयाध्यक्ष बनाया गया और इस पद की योग्यता हासिल करने के लिए वे यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए। 1925 से मद्रास में उन्होने यह काम पूरी लगन से शुरू किया और 1944 तक वे इस पद पर बने रहे। 1945-47 के दौरान उन्होने बनारस (वर्तमान वाराणसी) हिन्दू विश्वविद्यालय में पुस्तकालयाध्यक्ष और पुस्तकालय विज्ञान के प्राध्यापक के रूप में कार्य किया व 1947-54 के दौरान उन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाया। 1954-57 के दौरान वे ज्यूरिख, स्विट्जरलैंड में शोध और लेखन में व्यस्त रहे। इसके बाद वे भारत लौट आए और 1959 तक विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में अतिथि प्राध्यापक रहे। 1962 में उन्होने बंगलोर में प्रलेखन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया और इसके प्रमुख बने और जीवनपर्यंत इससे जुड़े रहे। 1965 में भारत सरकार ने उन्हें पुस्तकालय विज्ञान में राष्ट्रीय शोध प्राध्यापक की उपाधि से सम्मानित किया।[2][3]

योगदान और निर्णायक कथन संपादित करें

इनकी फ़ाईव लौज ऑफ लाइब्रेरी साइंस (1931) को पुस्तकालय सेवा के आदर्श और निर्णायक कथन के रूप में व्यापक रूप से स्वीकृत किया गया है, इसके अतिरिक्त -
क्लासिफाईड कैटेलॉग कोड (1934)
प्रोलेगोमेना टु लाइब्रेरी क्लासिफिकेशन (1937)
थ्योरी ऑफ लाइब्रेरी कैटेलॉग (1938)
एलीमेंट्स ऑफ लाइब्रेरी क्लासिफिकेशन (1945)
क्लासिफिकेशन एंड इन्टरनेशनल डाक्यूमेंटेशन (1948)
क्लासिफिकेशन एंड कम्यूनिकेशन (1951)
हेडिंग्स एंड काइनन्स (1955) प्रमुख हैं।[4]
पुस्तकालय सेवा में आदर्श भूमिका संपादित करें

सन् 1924 के पूर्व भारत में ग्रन्थालय व्यवसाय, लिपिक कार्य (बाबूगिरी) और घरों में ग्रन्थों तथा ग्रन्थ जैसी वस्तुओं को रखने का धन्धा मात्र ही समझा जाता था। यह सन् 1924 का समय था जब भारत के ग्रन्थालयी दृश्य पर डॉ॰ रंगनाथन का आगमन हुआ, वे प्रथम विश्वविद्यालयीय पुस्तकालयाध्यक्ष थे, जो मद्रास विश्वविद्यालय में नियुक्त किये गये। वे अपने जीवन के प्रथम 25 वर्षों के दौरान अपने को एकल-अनुसंधान में तल्लीन करके तथा शेष 25 वर्षों में दलअनुसंधान का संगठन करके भारत में ग्रन्थालयी दृश्य को पहले परिवर्तित किया। अपने पुस्तकालयी व्यवसाय के 48 वर्षों के दौरान, उन्होंने भारत में ग्रन्थालय व्यवसाय की उन्नति के लिए एक महान भूमिका निभाई. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने डॉ॰ रंगनाथन के 71वें जन्म वर्षगाँठ के अवसर पर बधाई देते हुये लिखा, "डॉ॰ रंगनाथन ने न केवल मद्रास विश्व-विद्यालय ग्रन्थालय को संगठित और अपने को एक मौलिक विचारक की तरह प्रसिद्ध किया अपितु सम्पूर्ण रूप से देश में ग्रन्थालय चेतना उत्पन्न करने में साधक रहे। विगत 40 वर्षों के दौरान उसके कार्य और शिक्षा का ही परिणाम है कि भारत में ग्रन्थालय विज्ञान तथा ग्रन्थालय व्यवसाय उचित प्रतिष्ठा प्राप्त कर सका। "[5][6]

डॉ॰ रंगनाथन ने अत्यधिक सृजनात्मक उत्साह के साथ कार्य किया। उन्होंने स्वयं के विचारों को विकसित किया। उन्होंने बार-बार पुस्तकें व शोध-पत्र लिखे. उन्होंने जन-ग्रन्थालय विधेयकों का मसौदा (प्रारूप) तैयार किया और राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय क्रिया-कलापों को प्रोत्साहित किया तथा सहयोग दिया। निम्नलिखित विभिन्न व्यक्तिगत विशेषताएँ हैं जिससे डॉ॰ रंगनाथन ने भारत में पुस्तकालय व्यवसाय को प्रोत्साहित किया, जैसे: प्रजनक लेखक, वर्गीकरणाचार्य और वर्गीकरणकर्त्ता, सूचीकरणकर्त्ता, संगठनकर्त्ता, अध्यापक-शिक्षक-गुरू, दाता, सभापति, अध्यक्ष, सलाहकार, सदस्य, प्रलेखनाज्ञाता इत्यादि।
Similar questions