easy and short essay on 'aapda prabhandan' in hindi
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सूखा, बाढ़, चक्रवाती तूफानों, भूकम्प, भूस्खलन, वनों में लगनेवाली आग, ओलावृष्टि, टिड्डी दल और ज्वालामुखी फटने जैसी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है, न ही इन्हें रोका जा सकता है लेकिन इनके प्रभाव को एक सीमा तक जरूर कम किया जा सकता है, जिससे कि जान-माल का कम से कम नुकसान हो। यह कार्य तभी किया जा सकता है, जब सक्षम रूप से आपदा प्रबंधन का सहयोग मिले। प्रत्येक वर्ष प्राकृतिक आपदाओं से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले देशों में भारत का दसवां स्थान है।
प्राकृतिक आपदाओं में अपार जन-धन की हानि होती है तथा पर्यावरण असन्तुलित होता है । सभी प्रकार की आपदाओं में जोखिम होता है तथा उनसे बचने के लिए संसाधन एवं सूचना तंत्र की आवश्यकता होती है ।
किन्तु प्राकृतिक आपदाएँ ऐसी होती हैं जिनको रोका नहीं जा सकता । उनकी सघनता को कम किया जा सकता है । साथ ही उनके होने पर समायोजन आवश्यक होता है । समायोजन भी प्रबन्धन का अंग है । सम्पूर्ण आपदा समायोजना को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जाता है ।
ये हैं:
(i) हानि के स्वरूप में परिवर्तन:
सर्वप्रथम आपदा के पश्चात् उससे शिकार हुए लोगों को सहायता पहुँचाना होता है । इसके लिए बीमा योजनाओं का प्रावधान आवश्यक है । इन योजनाओं से नुकसान की भरपाई की जा सकती है तथा आपदा के पश्चात् सरकार एवं गैर सरकारी सहायता भी हानि की पूर्ति करने में सहायक होती है ।
(ii) आपदा घटनाक्रम में परिवर्तन:
अधिकाँशत: आपदा की प्रकृति को सही रूप में पहचाना नहीं जाता । इसको उचित रूप में समझ कर प्रारम्भिक समय में ही दबाया जा सकता है जो पर्यावरण प्रौद्योगिकी नियन्त्रण से सम्भव है । इसी प्रकार आपदा सहनीय संरचनाओं का निर्माण भी हानि को कम कर सकता है जैसा कि जापान में भूकम्परोधी संरचनाओं के निर्माण द्वारा किया जाता है ।
प्राकृतिक आपदाओं में अपार जन-धन की हानि होती है तथा पर्यावरण असन्तुलित होता है । सभी प्रकार की आपदाओं में जोखिम होता है तथा उनसे बचने के लिए संसाधन एवं सूचना तंत्र की आवश्यकता होती है ।
किन्तु प्राकृतिक आपदाएँ ऐसी होती हैं जिनको रोका नहीं जा सकता । उनकी सघनता को कम किया जा सकता है । साथ ही उनके होने पर समायोजन आवश्यक होता है । समायोजन भी प्रबन्धन का अंग है । सम्पूर्ण आपदा समायोजना को तीन श्रेणियों में विभक्त किया जाता है ।
ये हैं:
(i) हानि के स्वरूप में परिवर्तन:
सर्वप्रथम आपदा के पश्चात् उससे शिकार हुए लोगों को सहायता पहुँचाना होता है । इसके लिए बीमा योजनाओं का प्रावधान आवश्यक है । इन योजनाओं से नुकसान की भरपाई की जा सकती है तथा आपदा के पश्चात् सरकार एवं गैर सरकारी सहायता भी हानि की पूर्ति करने में सहायक होती है ।
(ii) आपदा घटनाक्रम में परिवर्तन:
अधिकाँशत: आपदा की प्रकृति को सही रूप में पहचाना नहीं जाता । इसको उचित रूप में समझ कर प्रारम्भिक समय में ही दबाया जा सकता है जो पर्यावरण प्रौद्योगिकी नियन्त्रण से सम्भव है । इसी प्रकार आपदा सहनीय संरचनाओं का निर्माण भी हानि को कम कर सकता है जैसा कि जापान में भूकम्परोधी संरचनाओं के निर्माण द्वारा किया जाता है ।
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