Easy example of bhakti ras.
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जहाँ ईश्वर के प्रति श्रद्धा और प्रेम का भाव हो,वहाँ भक्ति रस होता है।
स्थायी - ईश्वर प्रेम ।
संचारी - विवोध, चिंता, संत्रास, धृति, दैन्य, अलसता ।
आलंबन - ईश्वर कृपा, दया, महिमा ।
आश्रय - भक्त ।
उद्दीपन - मंदिर , मूर्ति आदि ।
अनुभाव - ध्यान लगाना, माला जपना, आँखें मूँदना, कीर्तन करना, रोना, सिर झुकाना आदि ।
जैसे -
मेरो मन अनत कहां सुख पावै।
जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै
कमलनैन कौ छांड़ि महातम और देव को ध्यावै।
परमगंग कों छांड़ि पियासो दुर्मति कूप खनावै||
जिन मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-फल खावै।
सूरदास, प्रभु कामधेनु तजि छेरी कौन दुहावै॥
विशेष -
* इसमें श्रीकृष्ण की भक्ति आलंबन है।
* कवि सूरदास का हृदय आश्रय है ।
* श्रीकृष्ण का रूप-सौन्दर्य , उनकी उदारता , भक्त-वत्सलता आदि उद्दीपन है।
* श्रीकृष्ण की भक्ति , उनके प्रति गहन लगाव , किसी और की भक्ति न करना, श्रीकृष्ण को सर्वश्रेष्ठ बताना , किसी और के शरणागत न होना तथा कृष्ण के समक्ष पूर्ण-समर्पण करना अनुभाव है।
* धैर्यपूर्वक श्रीकृष्ण की भक्ति , श्रीकृष्ण की दिव्यता का बोध आदि संचारी भाव है।
स्थायी - ईश्वर प्रेम ।
संचारी - विवोध, चिंता, संत्रास, धृति, दैन्य, अलसता ।
आलंबन - ईश्वर कृपा, दया, महिमा ।
आश्रय - भक्त ।
उद्दीपन - मंदिर , मूर्ति आदि ।
अनुभाव - ध्यान लगाना, माला जपना, आँखें मूँदना, कीर्तन करना, रोना, सिर झुकाना आदि ।
जैसे -
मेरो मन अनत कहां सुख पावै।
जैसे उड़ि जहाज कौ पंछी पुनि जहाज पै आवै
कमलनैन कौ छांड़ि महातम और देव को ध्यावै।
परमगंग कों छांड़ि पियासो दुर्मति कूप खनावै||
जिन मधुकर अंबुज-रस चाख्यौ, क्यों करील-फल खावै।
सूरदास, प्रभु कामधेनु तजि छेरी कौन दुहावै॥
विशेष -
* इसमें श्रीकृष्ण की भक्ति आलंबन है।
* कवि सूरदास का हृदय आश्रय है ।
* श्रीकृष्ण का रूप-सौन्दर्य , उनकी उदारता , भक्त-वत्सलता आदि उद्दीपन है।
* श्रीकृष्ण की भक्ति , उनके प्रति गहन लगाव , किसी और की भक्ति न करना, श्रीकृष्ण को सर्वश्रेष्ठ बताना , किसी और के शरणागत न होना तथा कृष्ण के समक्ष पूर्ण-समर्पण करना अनुभाव है।
* धैर्यपूर्वक श्रीकृष्ण की भक्ति , श्रीकृष्ण की दिव्यता का बोध आदि संचारी भाव है।
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