easy examples of ras
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रस की परिभाषा
सामान्यत: रस पीने या चखने की चीज़ है। जिस तरह रस-पान से हमारी सामान्य दैहिक पिपासा शान्त होती है, ठीक उसी तरह साहित्यिक रस-पान से हमारी आत्मिक या मानसिक पिपासा शान्त होती है। साहित्यिक रस-पान देखकर , सुनकर और पढ़कर किया जाता है। रस काव्य या साहित्य की आत्मा है।
इनकी संख्या ११ है :--
शृंगार , हास्य , रौद्र , करुण , वीर , अदभुत ,वीभत्स , भयानक , शान्त , वात्सल्य , भक्ति ।
सामान्यत: रस पीने या चखने की चीज़ है। जिस तरह रस-पान से हमारी सामान्य दैहिक पिपासा शान्त होती है, ठीक उसी तरह साहित्यिक रस-पान से हमारी आत्मिक या मानसिक पिपासा शान्त होती है। साहित्यिक रस-पान देखकर , सुनकर और पढ़कर किया जाता है। रस काव्य या साहित्य की आत्मा है।
इनकी संख्या ११ है :--
शृंगार , हास्य , रौद्र , करुण , वीर , अदभुत ,वीभत्स , भयानक , शान्त , वात्सल्य , भक्ति ।
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रस नौ होते है।
1 श्रृंगार रस
"गाता शुक जब किरण बसंती छूती अंग पर्ण से छनकर
किंतु शुकी के गीत उमड़कर रह जाते सनेह में सन कर"
2 वीर रस
" वह खून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं
वह खून कहो किस मतलब का आ सके देश के काम नहीं"
3 शांत रस
" माली आवत देखि के कलियनुँ करे पुकार
फूले फूले चुन लई काल्हि हमारी वार"
4 करुण रस
"हां सही न जाती मुझसे अब आज भूख की ज्वाला
कल से ही प्यास लगी है हो रहा ह्रदय मतवाला"
5 रौद्र रस
"रे नृप बालक काल बस बोलत तोहि न संभार
धनुही सम त्रिपुरारी धनु विदित सकल संसार "
6 भयानक रस
"एक ओर अजगर ही लखि एक ओर मृग राय
विकल बटोही बीच ही परर्यो मूर्छा खाए"
7 वीभत्स रस
"सिर पर बैठ्यो काग आंख दोउ खात निकारत
खींचत जीभहिं स्यार अतिहिआनंद उर धारत"
8 अद्भुत रस
"अखिल भुवन चर अचर सब हरि मुख में लखि मातु
चकित भई गद् गद वचन विकसित दृग पुलकातु"
9 हास्य रस
"लाला की लाली यों बोली
सारा खाना ये चर जाएंगे
जो बच्चे भूखे बैठे हैं
क्या पंडित जी को खाएँगे "।
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1 श्रृंगार रस
"गाता शुक जब किरण बसंती छूती अंग पर्ण से छनकर
किंतु शुकी के गीत उमड़कर रह जाते सनेह में सन कर"
2 वीर रस
" वह खून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं
वह खून कहो किस मतलब का आ सके देश के काम नहीं"
3 शांत रस
" माली आवत देखि के कलियनुँ करे पुकार
फूले फूले चुन लई काल्हि हमारी वार"
4 करुण रस
"हां सही न जाती मुझसे अब आज भूख की ज्वाला
कल से ही प्यास लगी है हो रहा ह्रदय मतवाला"
5 रौद्र रस
"रे नृप बालक काल बस बोलत तोहि न संभार
धनुही सम त्रिपुरारी धनु विदित सकल संसार "
6 भयानक रस
"एक ओर अजगर ही लखि एक ओर मृग राय
विकल बटोही बीच ही परर्यो मूर्छा खाए"
7 वीभत्स रस
"सिर पर बैठ्यो काग आंख दोउ खात निकारत
खींचत जीभहिं स्यार अतिहिआनंद उर धारत"
8 अद्भुत रस
"अखिल भुवन चर अचर सब हरि मुख में लखि मातु
चकित भई गद् गद वचन विकसित दृग पुलकातु"
9 हास्य रस
"लाला की लाली यों बोली
सारा खाना ये चर जाएंगे
जो बच्चे भूखे बैठे हैं
क्या पंडित जी को खाएँगे "।
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anu57371:
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