India Languages, asked by sweetysanghvi2212, 7 months ago

एहि सुशीले, एहि मृणालिनि, पुष्पवाटिकांगच्छाम । बिविधै: कुसूमैर्विधाय मालां विघ्नविनाशकम अचांम ।।

अथवा वैद्यराज नमस्तुभां यमराजसहोदर ।

यमस्तु हरति प्राणाम्वैद्य: प्राणान् धनानि च ।।

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Answered by msjayasuriya4
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Answer:

अहिल्या उद्धार : हरि नाम जप महिमा

धर्मराजादित्य 王义阳 धर्मराजादित्य 王义阳

7 वर्ष पहले

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srira

श्रीरामचरितमानस

बालकाण्ड

प्रसंग : अहिल्या उद्धार

सन्दर्भ : मानव जीवन में भगवन्नाम सुमिरन की महत्ता।

आश्रम एक दीख मग माहि। खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं॥

पूछा मुनिहि सिल प्रभु देखि। सकल कथा मुनि कहा बिसेषी॥

दो०

गौतम नारी शाप बस उपल देह धरी धीर।

चरण कमल राज चहति कृपा करहु रघुबीर॥ २१०॥

छं०

परसत पद पावन सोक नसावन प्रगट भई तपपुंज सही।

देखत रघुनायक जनसुखदायक सन्मुख होई कर जोरि रही॥

अति प्रेम अधीरा पुलक सरीरा मुख नहीं आवई बचन कही।

अतिसय बड़भागी चरनन्हि लागी जुगल नयन जलधार बही॥

धीरजु मन कीन्हा प्रभु कहूँ चीन्हाँ रघुपति कृपा भागती पाई।

अति निर्मल बानि अस्तुति ठानी ग्यानगम्य जय रघुराई॥

मैं नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुखदाई।

राजीव बिलोचन भव भय मोचन पाहि-पाहि सरनहिं आई॥

मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा परम अनुग्रह मैं माना।

देखेउ भरि लोचन हरि भव मोचन इहई लाभ संकट जाना॥

बिनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न माँगऊँ बार आना।

पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना॥

जेहि पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी।

सोई पद पंकज जेहि पूजत अज मम सर धरेउ कृपाल हरी॥

एहि भाँति सिधारी गौतम नारी बार-बार हरी चरन परी।

जो अति मन भावा सो बरु पावा गै पति लोक आनंद भरी॥

दो०

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