Eid par kavita likho
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ईद मुबारक हिन्दी कविता
वो बच्चों की आंखों में सपने सुनहरे। हसीनों के हाथों पें मेंहदी के पहरे। सजीली दुकानों में रंगों के लहरे। वो ख़ुश्बू की लडियां उजालों के सहरे।। उमंगें भरी चाँद रातें सुहानी। बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।। वो राहों में ख़ुश-पोशयारों के हल्ले। वो किरनों से मामूर गलियाँ मुहल्ले। झरुकों में रंगीं दुपटटों के पल्ले। वो मांगों में अफ़शांवो हाथों में छल्ले।। वो अपनी सी तहज़ीब की तरजुमानी। बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।। वो कुल्फ़ी के टुकड़े वो शरबत के गोले। चहकते से बच्चे बड़े भोले भोले। वो झूलों पे कमसिन हसीनों के टोले। फ़ज़ा में ग़ुबारों के उड़ते बगूले। बसंती गुलाबी हरे आसमानी। बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।। वो रौनक, वो मस्तीभरी चहल पहलें। वो ख़्वाहिश कि आओ मुहल्लों में टहलें। इधर चल के बैठें,उधर जा के बहलें। कुछ आंखों से सुनलें कुछ आंखों से कहलें करें जा के यारों में अफ़साना-ख़्वानी। बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।। झलकती वो चेहरों पे बरकत घरों की। निगाहों में शफ़क़त बड़ी-बूढियों की। अदाओं में मासूमियत कमसिनों की। वो बातों में अपनाईयत दोस्तों की।। मुरव्वत,करम,मुख़लिसी,मेहरबानी। बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।। मगर कहाँ ” साज़ “वो दौरे-राहत। लबों पे हंसी है न चेहरों पे रंगत। न जेबों में गर्मी न दिल में हरारत। न हाथों के मिलने मेंअगली सी चाहत। हक़ीक़त था वो दौर या इक कहानी। बहोत याद आती हैं ईदें पुरानी।