Eid पर निबंध हिंदी में
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हमारे देश भारत में प्रत्येक समाज के अपने अलग-अलग त्योहार होते हैं और उनका महत्व भी उनके लिए बहुत ही बहुत होता है प्रत्येक व्यक्ति अपनी खुशी के लिए सब के साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं। ये त्योहार रोज के जीवन से अलग होता है । उसे हम एक बहुत खास दिन मानते हैं । उन्ही त्योहारों में से एक है ।ईद जिसे सभी मुसलमान भाई मिलकर मनाते हैं इसे ईद-उल-फितर के नाम से भी जाना जाता है और ईद-उल-अजहा के नाम से भी जाना जाता है। ईद मान्य भाषा मे मीठी ईद ओर बकरा ईद। इस प्रकार ईद का अपना एक महत्व है।
‘ईद का चांद’ जैसे मुहावरे का सम्बन्ध ईद के त्योहार से ही है। क्योंकि ईद की गणना और आगमन चन्द्रमा के उदय होने पर ही निर्भर होता है। यह त्यौहार मुस्लिम भाइयों का एकमात्र ऐसा त्योहार है जिस दिन वे सबसे अधिक प्रसन्न रहते हैं। इसीलिए ‘ईद’ शब्द प्रसन्नता का द्योतक है। यह प्रसन्नता, सुन्दरता तथा पारस्परिक मधुर-मिलन के भाव को प्रकट करने वाला त्योहार है।
ईद का त्योहार प्रतिवर्ष एक बार नहीं, बल्कि दो बार आता है। पहले यह फाल्गुन (फरवरी-मार्च) महीने में आता है, तब इसे ‘ईद-उल-फितर‘ नाम से पुकारते हैं। दूसरी बार यह त्योहार ज्येष्ठ (मई) मास में आता है, तब से ‘ईद-उल-जुहा’ नाम दिया जाता है परन्तु यह सर्वथा निश्चित नहीं है कि यह त्योहार प्रतिवर्ष इन्हीं महीनों में आए क्योंकि इसमें तिथि। की गणना हिज़ी कैलेंडर के हिसाब से तथा चांद के उदय होने के साथ घटती-बढ़ती है। कई बार तो यह त्योहार अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है।
इन दो ईदों में से एक ‘शाकाहारी ढंग से मनाई जाती है तो दूसरी ‘मांसाहारी’ ढंग से। शाकाहारी ईद को ईद या मीठी ईद (ईद-उल-मिलाद) नाम दिया जाता है। इस दिन सिवइयाँ व मिठाइयां आदि खाने-खिलाने की परम्परा है। मांसाहारी ईद को ‘बकरीद’ नाम दिया जाता है। इस दिन बकरे हलाल कर उनका मांस एक तरह से शिरनी या प्रसाद के रूप में बांट कर खाने-खिलाने की परम्परा है।
ईद से पहले रमजान का पवित्र महीना हुआ करता है। रमजान के महीने में धार्मिक प्रवृत्ति वाले मुसलमान लोग सूर्योदय से पूर्व कुछ खा-पीकर दिनभर रोजा (व्रत) रखा करते हैं। पूर्णतया पाक-साफ रह कर दिन में पांच बार नमाज अदा करते हैं तथा सायंकाल में सूर्यास्त के बाद दान-पुण्य करके तथा निर्धनों आदि को भोजन खिलाकर तथा बाद में स्वयं खाकर रोजे (व्रत) को समाप्त करते हैं। ईद के दिन बच्चे, बूढ़े, स्त्री-पुरुष सभी प्रसन्नचित्त दिखाई पड़ते हैं। ये सभी मेलों में जाकर अपनी आवश्यकतानुसार खरीददारी करते हैं। सभी जन आपस में एक-दूसरे से प्रेमपूर्वक मिलते हैं तथा एक-दूसरे को बधाइयां देते हैं।
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Explanation:
प्रत्येक समाज के अपने अलग त्योहार होते हैं और उनका महत्व भी अलग-अलग होता है। लोग अपनी खुशी एकसाथ प्रकट करने के लिए त्योहार मनाते हैं। त्योहार रोजमर्रा की दिनचर्या से हटकर हम में काम करने का नया उत्साह पैदा करते हैं। कुछ त्योहार धार्मिक, कुछ सांस्कृतिक व कुछ राष्ट्रीय होते हैं जिन्हें हर समाज के हर वर्ग के लोग आपस में मिल-जुलकर मनाते हैं
ईद' का त्योहार इस्लामी माह शव्वाल की पहली तारीख को मनाया जाता है। इसके पहले रमजान का महीना होता है जिसे मुसलमान भाई बड़ा पवित्र महीना मानते हैं। इस पूरे माह रोजे (उपवास) रखते हैं। सूर्योदय से सूर्यास्त तक कुछ भी नहीं खाते। सूर्यास्त पश्चात रोजा (उपवास) खोला जाता है जिसे 'रोजा-इफ्तारी' कहते हैं। दिनभर 'कुरान शरीफ' का पाठ करते हैं और नियमपूर्वक नमाज अदा करते हैं। पूरा माह पवित्र जीवन बिताते हैं, गरीबों और दुखियों की मदद करते हैं।
रमजान माह की समाप्ति पर ईद का चांद देखकर रोजा समाप्त करते हैं। रोजों के बाद दिखाई देने वाला 'प्रथम चांद' ईद का चांद कहलाता है। यह मुसलमानों के लिए बड़ा प्यारा चांद होता है। ईद का चांद दिखाई देने के दूसरे दिन प्रात:काल स्नान कर नए वस्त्र पहन मस्जिदों और ईदगाह पर नमाज पढ़ने जाते हैं।
सब एकसाथ मिल-जुलकर अल्लाह (ईश्वर) को धन्यवाद देते हैं कि उसने उन्हें जीवन दिया, रोजे रखने की शक्ति दी। बाद में गले मिलकर ईद मुबारकबाद देते हैं। ईद मुबारक का मेला लगता है। एक-दूसरे के घर 'ईद' मुबारक करने जाते हैं।
सिवैयां और मिठाइयां खाई और खिलाई जाती हैं। सिवैयां इस दिन का प्रिय व्यंजन है। रात में मस्जिदों पर रोशनी की जाती है और आतिशबाजी होती है।
रमजान महीने में इन लोगों का विश्वास है कि रोजे रखने से उनकी आत्मा पवित्र होती है और नर्क से मुक्ति मिलती है। इसी खुशी में 'ईद' का त्योहार मनाया जाता है।
इस दिन हमें आपस में भेदभाव भुलाकर मिल-जुलकर त्योहार मनाना चाहिए। सभी तरह के राग-द्वेष भूलकर भाईचारे की भावना से मनाए गए त्योहारों की अपनी अलग ही शान होती है, क्योंकि त्योहार हमें ताजगी, स्फूर्ति और खुशियां प्रदान करते हैं ।
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