ek bharat shrestha bharat
article on rajasthan in 500 words
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प्रस्तावना- राजस्थान में ऐसे अनेक स्थान है जो जो राजपूतो की वीरता के साक्षी रहे है.वस्तुत ;इस नाम से इस प्रदेशकी रंग बिरगी परम्पराओ ,रीति रिवाजों एव आचलिक विशेषताओं का स्मरण हो जाता है .इसलिए इसे अनोखी जीवंत संस्कृति वाला तथा रंगीला प्रदेश भी कहा जाता है .
राजस्थान का रंगीला स्वरूप – प्राकृतिक रूप से राजस्थान को अरावली पर्वतमाला इसे दो भागो में अलग करती है .यहा की मरुभूमि हर किसी का मनहरण कर लेता है तो साउथ तथा ईस्ट राजस्थान हरी भरी भोगोलिक छटाओ के कारण मनमोहक है .यहाँ पर अनेक गढ़ ,किले ,ऐतिहासिक भवन ,महल मंदिर एव तीर्थ स्थान है .यहाँ रानी पद्मिनी ,कर्मावती ,पन्ना ,तारा ,महामाया आदि वीर महिलाओ ने तथा भक्तिमती मीरा सहजो बाई आदि ने नारीत्व का गोरव बढाई .शोर्य ,पराक्रम ,वीरता तथा शानदार सांस्कृतिक परम्पराओ के कारण राजस्थान का प्रत्येक भूभाग सुन्दर रंगीला दिखाई देता है .
राजस्थान की सुरंगी संस्कृति – राजस्थान की संस्कृति अपना विशिष्ट पहचान रखती है यहा पर अतिथि सत्कार दिल खोलकर किया जाता है .यहा धार्मिक पर्व त्योहार का आधिक्य है .तीज त्योहार के अलावा होली ,दीपावली ,गणगोर ,शीतलाष्टमी आदि के आलावा यहा अनेक स्थानीय त्योहार भी मनाये जाते है .यहा पर लोकदेवता गोगाजी ,पाबूजी ,रामदेवजी ,देवनारायणजी तेजाजी ,कलाजी के लोकजीवन का घर प्रभाव आमजीवन पर दिखाई देता है ,तो करणी माता ,जिणमाता ,शीलमाता ,आवडमाता अम्बामाता ,चोथमाता आदि देवियों का स्थान भी आमजन सर्वोत्तम है.
तीर्थराज पुष्कर नाथद्वारा, श्री महावीर जी, डिग्गी कल्याणजी, एकलिंग जी, कैलादेवी, खाटूश्याम, मेहंदीपुर बालाजी, अजमेर दरगाह आदि तीर्थस्थल जहाँ इसकी धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं, वहीँ नानारंगी हुडदंग, गैरों, गीदड़ों, डांडियों, रमतों, घुमरों, धमालो, ख्यालों, सांग तमाशों, घूसों बारूद भाटों के खेल बड़े अद्भुत और कड़क नजारे भी यहाँ के जनजीवन में देखने को मिलते हैं. इससे यहाँ की संस्कृति रंगीली लगती हैं.
राजस्थान की निराली छटा- राजस्थान निर्जल डूंगरों, ढाणियों और रेतीले धोरों का प्रदेश हैं. फिर भी यहाँ की धरती खनिज संपदा से समृद्ध हैं. संगमरमर तथा अन्य इमारती पत्थरों की यहाँ अनेक खाने हैं. इसी प्रकार तांबा, शीशा, अभ्रक, जस्ता आदि कीमती धातुओ के साथ चूना सीमेंट का पत्थर बहुतायत से मिलता हैं.
कलापूर्ण भित्तिचित्रों, अलंकृत चौकों, सुरम्य बावड़ियों एवं छतरियों के साथ यहाँ पर मीनाकारी, नक्काशी की वस्तुओं तथा साक्षात बोलती पत्थर की मूर्तियों का साक्षात्कार हर कहीं हो जाता हैं. स्थापत्य कला, मूर्ति कला, रंगाई छपाई एवं कशीदाकारी आदि अनेक कलाओं के साथ यहाँ संगीत नृत्य, लोकगीत आदि की अनोखी छटा दिखाई देती हैं. वस्तुतः ये सभी विशेषताएं राजस्थान के रंगीलेपन की प्रतिमान हैं.
उपसंहार- राजस्थान की धरा शौर्य गाथाओं, धार्मिक पर्वों, लोक आस्थाओं तथा सांस्कृतिक ऐतिहासिक परम्पराओं के कारण सम्रद्ध दिखाई देती हैं. वहीँ यहाँ पट शिल्प कला, स्थापत्य एवं चित्रकला के साथ अन्य विशेषताओं से जन जीवन को जीवतंता एवं रंगीलापन दिखाई देता हैं. वेश भूषा एवं पहनावे में, आचार विचार आस्था विश्वास और आंचलिकता की छाप आदि में राजस्थान रंगीला दिखाई देता हैं.