Ek Desh Ka bhaap dusre Desh Mein Pani Bankar girta Hai pankti ka bhavarth likhiye
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कवि कहते हैं कि हम मनुष्य देश को उसकी सीमाओं से जानते हैं किन्तु प्रकृति किसी सीमा को नहीं जानती। वह अपना वरदान सबको देती है। सुगंध किसी बंधन को नहीं मानते हुए एक देश से दूसरे देश उड़ती जाती है। वही महक पक्षियों के पंखो पर बैठकर इधर से उधर उड़ती रहती है और एक देश से उठी भाप दूसरे देश में वर्षा बनकर बरसती रहती है।
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लेखक कहना चाहते हैं कि एक देश का भाग उड़ते बादल बन जाता है और फिर उसके बाद वह पानी बनकर दूसरे देश में उड़ जाता है प्रकृति को किसी देश का सीमा नहीं पता है
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