Ek ghayel sanki ki atmkatha
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मैं एक सैनिक हूं, इस बात का मुझे बड़ा गर्व है । देश का सजग प्रहरी हूं । सीमाओं पर देश की रक्षा करने वाला, संकट के समय लड़ने वाला सैनिक हूं । मुझे अपनी मातृभूमि, अपने देश से असीम प्रेम है । अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व त्याग और समर्पण मेरे जीवन का ध्येय है । देश की सुरक्षा के लिए मैं हमेशा तत्पर रहता हूं । किसी भी पल, किसी भी समय हमें आपातकालीन स्थिति में बुलावा आ जाता है ।
ऐसे में अपने कर्तव्यपालन के लिए मेरा रोम-रोम तत्पर रहता है । जब मैं बहुत छोटा था, उन दिनों हमारे गांव के पास एक भीषण ट्रेन दुर्घटना हुई थी, जिसमें हजारों की संख्या में लोगों ने अपने प्राण गंवाये थे । सैकड़ों हताहत हुए थे ।
घायलों में छोटे बच्चे, महिलाएं, स्त्री-पुरुष सभी की चीख-पुकार सुनायी पड़ रही थी । ट्रेन की दूसरी खड़ी हुई मालगाड़ी से जबरदस्त यिाडुंत हुई थी । यह भिड़ंत इतनी जोरदार थी कि दोनों गाड़ियां एक-दूसरे में जा धंसी थीं ।
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यात्रियों के शव भी ट्रेनों के बीच में इस कदर फंस गये थे कि उन्हें निकालना कठिन जान पड़ता था । ट्रेन के डिब्ये पिचक गये थे । घायल यात्री अपने अंग-भंग के साथ कातर स्वर में चीख-पुकार मचा रहे थे ।
ऐसे समय में सैनिकों का दल वहां आ पहुंचा था । सैनिक इतनी सघन रात्रि में भी वहां उपलब्ध सीमित साधनों के माध्यम से हताहतों को सुरक्षित निकाल रहे थे ।
कोई उनका उपचार कर रहा था, तो कोई वहां ढूंढने आये परिजनों की सहायता कर रहा था । उन अस्थायी कैम्पों में सैनिक अपनी भूख-प्यास की चिन्ता किये बिना निःस्वार्थ भाव से अपना काम किये जा रहे
थे । यह सब देखकर मैंने भी अपने जीवन का लक्ष्य एक सैनिक बनना स्वीकार कर लिया । आज मैं भी एक सैनिक के रूप में देश व समाज की सेवा करना चाहता हूं ।
ऐसे में अपने कर्तव्यपालन के लिए मेरा रोम-रोम तत्पर रहता है । जब मैं बहुत छोटा था, उन दिनों हमारे गांव के पास एक भीषण ट्रेन दुर्घटना हुई थी, जिसमें हजारों की संख्या में लोगों ने अपने प्राण गंवाये थे । सैकड़ों हताहत हुए थे ।
घायलों में छोटे बच्चे, महिलाएं, स्त्री-पुरुष सभी की चीख-पुकार सुनायी पड़ रही थी । ट्रेन की दूसरी खड़ी हुई मालगाड़ी से जबरदस्त यिाडुंत हुई थी । यह भिड़ंत इतनी जोरदार थी कि दोनों गाड़ियां एक-दूसरे में जा धंसी थीं ।
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यात्रियों के शव भी ट्रेनों के बीच में इस कदर फंस गये थे कि उन्हें निकालना कठिन जान पड़ता था । ट्रेन के डिब्ये पिचक गये थे । घायल यात्री अपने अंग-भंग के साथ कातर स्वर में चीख-पुकार मचा रहे थे ।
ऐसे समय में सैनिकों का दल वहां आ पहुंचा था । सैनिक इतनी सघन रात्रि में भी वहां उपलब्ध सीमित साधनों के माध्यम से हताहतों को सुरक्षित निकाल रहे थे ।
कोई उनका उपचार कर रहा था, तो कोई वहां ढूंढने आये परिजनों की सहायता कर रहा था । उन अस्थायी कैम्पों में सैनिक अपनी भूख-प्यास की चिन्ता किये बिना निःस्वार्थ भाव से अपना काम किये जा रहे
थे । यह सब देखकर मैंने भी अपने जीवन का लक्ष्य एक सैनिक बनना स्वीकार कर लिया । आज मैं भी एक सैनिक के रूप में देश व समाज की सेवा करना चाहता हूं ।
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