Ek kahani das muhavare se banaye
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एक बार मोहन घर से चंपत हो गया , और उसके दोस्तों ने जब पूछा गया तब सब ने मुंह नहीं खोला | सारे दोस्त बाते बनाने लगे गए | आस-पास के पड़ोसी नमक-मिर्च लगा कर बाते करने लग गए | और जितने मुंह, उतनी बातें होनी लग गई | मोहन का परिवार तितर-बितर हो गया | मोहन के पिता ने उसकी परवरिश में जी-जान से जुट लगा थी | मोहन का कुछ पता नहीं चला और उनकी हालत आसमान से जमीन पर गिरना जैसी हो गई | मोहन अपनी घर का मोर्चा सँभालना नहीं संभाल सका | मोहन ने अपने पैर में खुद कुल्हाड़ी मार दी | अब मोहन पड़ोस में किसी को शक्ल दिखाने लायक नहीं रहा | मोहन के माता-पिता ने इस दुःख को आँसू पीकर बर्दाश्त कर लिया | अब सब को मोहन एक आँख नहीं भाता| मोहन के माता-पिता अकेले की कमर टूट गई | सारे लोग मोहन के माता-पिता के बारे में कीचड़ उछालने लग गए |
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