Ek naukar Ki Atmakatha
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एक नौकर की आत्मकथा
मैं एक नौकर हूँ। घर में काम करने वाला एक नौकर। आजकल मेरे लिए एक नया शब्द ईजाद हो गया है, घरेलू सहायक। पहले तो लोग हम जैसे लोगों को नौकर कहकर ही पुकारते थे। अब घरेलू सहायक नाम मिला है।
मैं एक परिवार में नौकरी करता हूँ। मैं उस परिवार के साथ ही रहता हूँ। इस परिवार में चार लोग हैं, दो मेरे मालिक-मालकिन और दो उनके बच्चे। मेरा इस संसार में और कोई नहीं है। मेरे माता-पिता बहुत पहले चल बसे और मेरा विवाह नहीं हुआ। मैं नौकरी की तलाश में अपने गांव से शहर आया तो एक दोस्त ने मुझे मेरे वर्तमान मालिक के यहां काम पर लगा दिया, तब से मैं यहीं पर रह रहा हूँ।
मेरे लिए मेरे मालिक ने बंगले में एक छोटा सा कमरा दे रखा है। मैं सुबह पाँच बजे उठ जाता हूँ। फिर मैं नहा-धोकर तैयार हो जाता हूं और मैं फिर घर की साफ-सफाई का कार्य करता हूँ। सात बजे तक सारा कार्य खत्म हो जाता है और घर के सदस्य जगना शुरू कर देते हैं। तब मैं सबके लिए नाश्ता तैयार करने लगता हूँ। नाश्ता करने के बाद मेरे मालिक काम पर चले जाते हैं। उनके दोनों बच्चे भी उनके साथ ही अपने स्कूल को चले जाते हैं। मेरी मालकिन घर पर रह जाती हैं।
मेरी मालकिन मुझे दोपहर के खाना बनाने का बारे में निर्देश देती है कि क्या बनाना है। इसके साथ ही वो खाना बनाने में मेरी मदद भी करती हैं। उसके बाद मैं दोपहर का खाना बनाता हूँ। दोपहर दो से चार तक का समय मेरा आराम करने का होता है, जो मेरे मालिक की तरफ से आराम करने के लिए मिलता है, तो मैं एक नींद ले लेता हूँ। पाँच बजे से मेरा काम फिर शुरू हो जाता है, फिर चाय बनाना, शाम का नाश्ता तैयार करना, फिर रात के भोजन की तैयारी करना। बस यही मेरी दिनचर्या है।
मेरे मालिक बहुत अच्छे हैं, मालकिन भी ठीक हैं, कभी-कभी मुझे डांट देती है लेकिन बाकी उनका व्यवहार भी ठीक है। मुझे यह चार लोगों का परिवार बेहद पसंद है, अब मैं इसे ही अपना परिवार मानता हूं और मुझे लगता है कि मेरा पूरा जीवन यही आराम से बीत जाएगा।