Ek Niti Kahani batao
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घने जंगल से गुजरती हुई सड़क के किनारे एक ज्ञानी गुरु अपने चेले के साथ एक साइन बोर्ड लगाकर बैठे हुए थे, जिस पर लिखा था- 'ठहरिए… आपका अंत निकट है! इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, रुकिए! …हम आपका जीवन बचा सकते हैं!'
एक कार फर्राटा भरते हुए वहां से गुजरी- चेले ने ड्राइवर को बोर्ड पढ़ने के लिए इशारा किया…
ड्राइवर ने बोर्ड की ओर देखकर भद्दी-सी गाली दी और चेले से यह कहता हुआ निकल गया- 'तुम लोग बियाबान के जंगल में भी धंधा कर रहे हो, शर्म आनी चाहिए!'
चेले ने असहाय नजरों से गुरुजी की ओर देखा। गुरुजी बोले - 'जैसे प्रभु की इच्छा!'
कुछ ही पल बाद कार के ब्रेकों के चीखने की आवाज आई और एक जोरदार धमाका हुआ।
कुछ देर बाद एक मिनी-ट्रक निकला। उसका ड्राइवर भी चेले को दुत्कारते हुए बिना रुके आगे चला गया।
कुछ ही पल बाद फिर ब्रेकों के चीखने की आवाज और फिर धड़ाम….!
गुरुजी फिर बोले- 'जैसी प्रभु की इच्छा!'
अब चेले से नहीं रहा गया। बोला- 'गुरुजी, प्रभु की इच्छा तो ठीक है, पर कैसा रहे यदि हम इस बोर्ड पर सीधे-सीधे लिख दें कि-
....
.....
'आगे पुलिया टूटी हुई है'… !!!'
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कहानी हिन्दी में गद्य लेखन की एक विधा है। उन्नीसवीं सदी में गद्य में एक नई विधा का विकास हुआ जिसे कहानी के नाम से जाना गया। बंगला में इसे गल्प कहा जाता है। कहानी ने अंग्रेजी से हिंदी तक की यात्रा बंगला के माध्यम से की। कहानी गद्य कथा साहित्य का एक अन्यतम भेद तथा उपन्यास से भी अधिक लोकप्रिय साहित्य का रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना तथा सुनना मानव का आदिम स्वभाव बन गया। इसी कारण से प्रत्येक सभ्य तथा असभ्य समाज में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में कहानियों की बड़ी लंबी और सम्पन्न परंपरा रही है। वेदों, उपनिषदों तथा ब्राह्मणों में वर्णित 'यम-यमी', 'पुरुरवा-उर्वशी', 'सौपणीं-काद्रव', 'सनत्कुमार- नारद', 'गंगावतरण', 'श्रृंग', 'नहुष', 'ययाति', 'शकुन्तला', 'नल-दमयन्ती' जैसे आख्यान कहानी के ही प्राचीन रूप हैं।
प्राचीनकाल में सदियों तक प्रचलित वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाएँ, जिनकी कथानक घटना प्रधान हुआ करती थीं, भी कहानी के ही रूप हैं। 'गुणढ्य' की "वृहत्कथा" को, जिसमें 'उदयन', 'वासवदत्ता', समुद्री व्यापारियों, राजकुमार तथा राजकुमारियों के पराक्रम की घटना प्रधान कथाओं का बाहुल्य है, प्राचीनतम रचना कहा जा सकता है। वृहत्कथा का प्रभाव 'दण्डी' के "दशकुमार चरित", 'बाणभट्ट' की "कादम्बरी", 'सुबन्धु' की "वासवदत्ता", 'धनपाल' की "तिलकमंजरी", 'सोमदेव' के "यशस्तिलक" तथा "मालतीमाधव", "अभिज्ञान शाकुन्तलम्", "मालविकाग्निमित्र", "विक्रमोर्वशीय", "रत्नावली", "मृच्छकटिकम्" जैसे अन्य काव्यग्रंथों पर साफ-साफ परिलक्षित होता है। इसके पश्चात् छोटे आकार वाली "पंचतंत्र", "हितोपदेश", "बेताल पच्चीसी", "सिंहासन बत्तीसी", "शुक सप्तति", "कथा सरित्सागर", "भोजप्रबन्ध" जैसी साहित्यिक एवं कलात्मक कहानियों का युग आया। इन कहानियों से श्रोताओं को मनोरंजन के साथ ही साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः कहानियों में असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय दिखाई गई हैं। आप हमारी कहानियो का संग्रह भी देख सकते हें।